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रामायण – एक परिचय
“ यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले ।
तावत् रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति ”
वैदिक युग में वेदों , उपनिषदों , आरण्यकों , ब्राह्मण ग्रंथों आदि का अध्ययन अध्यापन होता था । समय बीतने के साथ-साथ वैदिक युग अपनी समाप्ति की ओर था । तभी 500 ईसा पर्व के आसपास महर्षि वाल्मीकि के द्वारा संसार का पहला लौकिक महाकाव्य रामायण की रचना हुई । रामायण का अर्थ है राम + अयन = राम द्वारा बताया गया सन्मार्ग एवं आयन = राम का चरित्र ।
रामायण लेखन की प्रेरणा
प्राचीन समय में रत्नाकर नाम का एक डाकू था । वह अपने परिवार के साथ एक वन में निवास करता था । वन से यात्रा करने वाले यात्रियों को वह लूट कर अपने परिवार का पालन पोषण करता था । लूटने की अपनी इस आदत से वह इतना आसक्त हो गया था कि अब वह यात्रियों की हत्या भी करने लगा था । एक दिन उसी वन से नारद मुनि गुजर रहे थे रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने की सोची । जब नारद मुनि और रत्नाकर डाकू का आमना सामना हुआ तो नारद मुनि ने उसे समझाया कि यह तो जो तुम कर रहे हो वह पाप है और इसका फल तुम्हें ही भोगना पड़ेगा और कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा ।
तब रत्नाकर डाकू ने अपने परिवार के पास जाकर पूछ क्या तुम सब मेरे द्वारा किए गए पाप के फल को भोगोगे तब सब परिवार ने उसके पाप में सहभागिता को अस्वीकार कर दिया तब उसने चोरी और लूटने के काम को छोड़कर नारद मुनि द्वारा बताने पर राम नाम के जाप से अपनी तपस्या प्रारंभ की । रत्नाकर ने इतनी कठोर तपस्या की की उसके शरीर के चारों ओर मिट्टी की मोटी परत जम गई और उस मिट्टी में कीड़े और दीमकों ने अपना स्थान बना लिया था तब ब्रह्मा जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनको वरदान देने के लिए आए मिट्टी की परत से बाहर आने से वह वाल्मीकि कहलाए ।
“ वल्मीकात् आगतः इति वाल्मीकिः ”
ब्रह्मा जी ने वाल्मीकि जी को दिव्या दृष्टि प्रदान की और उनको रामायण लिखने की प्रेरणा की ।
रामायण ग्रंथ
रामायण महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित एक आर्ष काव्य है। इसको आदि काव्य भी कहा जाता है । रामायण ग्रंथ के लेखन से पूर्व महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर संध्या वंदन के लिए गए । वहां पर उन्होंने क्रौंचयुगल को देखा । एक शिकारी ने क्रौंचयुगल में से नर क्रौंच को मार दिया । इस दृश्य को देखकर वाल्मीकि जी को बहुत शोक हुआ और उनका शोक श्लोक के रूप में बाहर आया ।
“ शोकः श्लोकत्वागतः ”
“ मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समाः ।
यत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥ ”
इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि का यह शोक काव्य में जाकर करुण रस बन गया । इसलिए रामायण महाकाव्य करुण रस प्रधान है । संपूर्ण रामायण लगभग अनुष्टुप् छन्द में ही निबद्ध है । इसलिए अनुष्टुप छंद को लौकिक काव्य का आदि छन्द कहा जाता है । आनंदवर्धन ने धन्यालोक में कहा है –
“ रामायणे हि करुणो रसः
स्वयं आदिकविना सूत्रतः । ”
रामायण ग्रंथ का विभाजन
“ चतुर्विंशत्सहस्राणि श्लोकानामुक्तवानृषिः ।
तथा सर्गशतान्पञ्च षट्काण्डानि तथोत्तरम् ॥ ”
वाल्मीकि रामायण में सात कांड 500 स्वर्ग और 24000 श्लोक है सात कांडों के नाम इस प्रकार है –
- बालकांड
- अयोध्याकांड
- अरण्यकांड
- किष्किंधा कांड
- सुंदरकांड
- युद्ध कांड
- उत्तर कांड
1 बालकांड :- 77 सर्ग
- इक्ष्वाकु वंश का वर्णन ।
- भागीरथ द्वारा गंगा अवतरण ।
- क्रौंच वध वियोग की घटना ।
- दशरथ विवाह एवं संतानहीनता ।
- रामादि चारों भाइयों वह बहन शांता का जन्म ।
- ताड़का वध एवं अहिल्या उद्धार ।
- रामादि चारों भाइयों व शांता का विवाह ।
2 अयोध्याकांड :- 119 सर्ग
- राम का पत्नी सहित अयोध्या आगमन ।
- राम के राज्याभिषेक की तैयारी।
- मंथरा दासी वह कैकेयी द्वारा षड्यंत्र रचना ।
- राम वनवास और भरत का राज्याभिषेक ।
- दशरथ की मृत्यु वह भरत का ननिहाल से आगमन ।
- चित्रकूट में राम भरत मिलाप ।
3 अरण्यकांड :- 75 सर्ग
- शूर्पनखा वृतांत ।
- मारिच द्वारा स्वर्ण मृग बनाकर माया रचना ।
- सीता द्वारा स्वर्ण वर्ग की मांग ।
- रावण द्वारा सीता हरण ।
- जटायु द्वारा रावण को रोकने का प्रयास ।
- शबरी वृतांत ।
4 किष्किंधा कांड :- 67 सर्ग
- लघुतम कांड है ।
- राम द्वारा बाली का वध एवं सुग्रीव का राज्याभिषेक
- सीता खोज की योजना।
- जामवंत द्वारा हनुमान की शक्तियों को जगाना ।
5 सुंदरकांड :- 68 सर्ग
- हनुमान द्वारा समुद्र लांघने की घटना ।
- हनुमान द्वारा अशोक वाटिका को नष्ट करना ।
- हनुमान सीता मिलन व मुद्रिका देना।
- सीता द्वारा हनुमान को चूड़ामणि देना।
- हनुमान की पूंछ में आग लगाना और लंका का दहन होना ।
6 युद्ध कांड :- 128 सर्ग
- दीर्घतम कांड है ।
- रावण द्वारा विभीषण का परित्याग
- नल नील द्वारा सेतु निर्माण करना
- मेघनाथ द्वारा लक्ष्मण को मूर्छित करना ।
- हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाना ।
- लक्ष्मण द्वारा मेघनाथ का वध ।
- राम द्वारा रावण व कुंभकरण का वध ।
- राम का अयोध्या आगमन ।
- राम का राज्याभिषेक करना ।
7 उत्तरकांड :- 111 सर्ग
- राम सीता का सुखमय दांपत्य जीवन ।
- गर्भवती सीता का राम द्वारा त्याग ।
- वाल्मीकि के आश्रम में लव कुश का जन्म ।
- राम द्वारा शंबुक वध ।
- राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ करना ।
रोचक तथ्य :-
१ . कई लोग रामायण में लक्ष्मण रेखा को मानते हैं लेकिन वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण रेखा का कोई भी वर्णन प्राप्त नहीं होता है। रामचरितमानस में लक्ष्मण रेखा से संबंधित एक चौपाई मिलती है केवल –
कंत समुझि मन तजहु कुमतिही ।
सोह न समर तुम्हहि रघुपतिही ।
सामानुज लघु रेख खचाई ।
सोउ नहिं नाघेहु असि मनुसाई ॥
२. कई लोग सोचते हैं कि रावण ने माता सीता को कभी भी स्पर्श नहीं किया लेकिन यह सत्य वाल्मीकि रामायण में श्लोक प्राप्त होता है –
वामेन सीतां पद्माक्षीं मूर्धजेषु करेण सः ।
ऊर्वोस्तु दक्षिणेनैव परिजग्राह पाणिना ॥
३. कई विद्वान उत्तर कांड को प्रक्षिप्त मानते हैं और इसके लिए वे प्रमाण भी देते हैं –
उत्तरकाण्डम् त्वस्य खिलम् , भारतस्य हरिवंशवत् ।
दशशिरसश्च वधमित्यनेन वधान्तमिदं श्रोतव्यमिति सूचितम् ।
– नागेश भट्ट की टीका से
४. राम , लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न ये चारों भाई चार पुरुषार्थ के प्रतीक है । राम धर्म के प्रतीक है , लक्ष्मण काम के प्रतीक हैं , भरत मोक्ष के प्रतीक है और शत्रुघ्न अर्थ के प्रतीक है ।
५. राम दशरथ की ही क्यों पुत्र है ?
दशरथ का अर्थ होता है दश रथी अर्थात जिसने अपनी दसों इंद्रियों को अपने अधीन कर लिया हो । जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है उसको राम प्राप्त होते हैं । इसलिए राम दशरथ के पुत्र है ।
रामायण पर आधारित नाटक
- अनर्घराघव – मुरारी
- प्रसन्न राघव – जयदेव
- बाल रामायण – राजशेखर
- कुन्दमाला – दिङ्गनाग
- उत्तर रामचरितम – भवभूति
- प्रतिमा नाटक – भास
रामायण पर आधारित काव्य
- भट्टिकाव्यम् – भट्टि
- रामायणमंजरी – क्षेमेंद्र
- सेतुबंध – प्रवर सेन
- जानकीहरण – कुमार दास
- रघुवंशम् – कालिदास
रामायण पर आधारित चंपू काव्य
- रामायण चंपू – भोज
- राम कथा – अनंत भट्ट
- उत्तर चंपू – वेंकटाध्वरि
अतः
“ काव्यं रामायणं कृत्स्नं सीतायाः चरितं महत् ”
Rajkumar
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