मदनमोहनमालवीय:( संस्कृति व गुरुकुल शिक्षा के समर्थक व स्थापक)

मदनमोहनमालवीय:( गुरुकुलशिक्षाया: समर्थक: स्थापकश्च)

          मालिनि

वसुशशिनवचन्द्रे(१९१८) वत्सरे पौषमासे

तदनु वसुतिथौ(८) हि वासरे चन्द्रसूनोः।

हरिभजनरताया:”मोना” देव्या: प्रसूति:

तनयमदनमोहन: मालवीयो प्रसिद्ध:।।

हिन्दी- हरि के भजन में निमग्न रहनें वाली भक्तिमति मोना देवी के गर्भ से मदन मोहन मालवीय जी का जन्म संंवत्सर 1918  के पौष महीने की अष्टमी तिथि को सोमवार के दिन हुआ।

       इन्द्रवज्रा

स बाल्यकालान्निपुणोपि आसीत्

गुणी तथा धर्मपदस्य ज्ञाता।

सनातनं वै प्रति श्रद्धधान:

चकार काव्यं “मकरन्द” नाम्ना।।

हिन्दी- यह बालक बाल्य काल से ही अत्यधिक निपुण व गुणी होने के साथ-साथ धार्मिक बातों में व धर्म की चर्चाओं में आस्था रखने वाला था, इसके साथ ही सनातन धर्म के प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखने वाला था। काव्य करने में निपुण होने के कारण इन्होंने मकरंद नाम से काव्य रचनाएं आरम्भ की।

असौ हि राष्ट्राय विमुच्य वृत्तिं,

स्वतंत्रतायै प्रकरोति कार्यम्।

विशेषतो छात्रहिताय भूय:

व्रतं महद्धारितवान् मनस्वी।।

हिन्दी- राष्ट्रीय हित में चिंतन करने के कारण ही इन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर के स्वतंत्रता संग्राम हेतु कार्य करना आरंभ किया, विशेष रूप से छात्र हित को ध्यान में रखते हैं हुए इन्होंने संकल्प लिये।

      भुजंगप्रयात

सुसंचालिता “भारती”धर्मसंस्था,

सुसंकल्पितो विश्वविद्यालयो वै।

सुसंस्थापिता मालवीयस्य नीति:,

भवेत्तेन शिक्षा ध्रुवं भारतीया।।

मदन मोहन मालवीय जी ने भारती नाम की एक धार्मिक संस्था का गठन किया गुरुकुल या शिक्षा पद्धति सर्वत्र स्थापित हो इसीलिए उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना सनातन मूल्य के आधार पर की

             मालिनि

युवकजनचरित्रम् अद्य जातं प्रदुष्टम्,

विविधकलुषितैर्वै दूष्यते भूरिश: तत्।

न हि किल युवचित्तं मार्ज्यते सूपदेशै:

शरणमिह समेषां मालवीयस्य शिक्षा:।।

हिन्दी-आज के चाक्चिक्य वातावरण में, इंटरनेट के युग में युवाओं का चरित्र जिस प्रकार से  प्रदूषित हो गया है। युवाओं के चित्र को प्रदूषित करने वाले अनेक अनेक कारण विद्यमान है।  विभिन्न उपदेशों के बाद भी युवाओं के मन बुद्धि में जमा हुआ कालुष्य दूर नहीं हो रहा है, ऐसी अवस्थिति में केवल मालवीय जी के द्वारा स्थापित की गई गुरुकुलीया शिक्षा पद्धति ही एकमात्र उपाय है।

भवतु गुरुकुलानां भारते स्थापनं द्राक्,

प्रभवतु पुनरेवं संस्कृति: भारतीया।

दधिघृतपयपदार्थान् सेव्यमाना: हि नित्यं,

निवसन्त्विह वटव: भारतीं भाषमाणा:।।

भारत में गुरुकुलों की अति शीघ्र स्थापना होवे और वहां भारतीय  सनातन संस्कृति के अनुसार ही अध्ययन अध्यापन की व्यवस्था हो।इन  गुरुकुलों में दुग्ध, दधि, घी इत्यादि गव्य पदार्थों का सेवन करते हुए छात्रों का वास हो जो भारतीय भाषाओं में व देववाणी में व्यवहार करने वाले हों।

भवतु नदिजलं तत् स्नानपानादिहेतौ,

कलकलमिह भूयात् क्षालनैः सन्ध्यापात्रै:।

दिनकरमिह छात्रा अर्चयेयु: प्रभाते,

प्रभवति तर्हि पूर्ण: मालवीयस्य स्वप्न:।।

इस प्रकार गुरुकुल की  शिक्षा पद्धति में गुरुकुल नदी जल के किनारो पर ही हो। जहां स्नान व पान हेतु नित्य प्रवाहित नदियों का स्वच्छ  जल हो और उस जल में संध्या पात्रों के प्रक्षालन से उत्पन्न होने वाली ध्वनि हो, छात्र नित्य सूर्य को जल अर्पण करते हो तब मालवीय जी सपना पूर्ण होता है।

समुचितश्रमयुक्ता: सौष्ठवा: सुष्ठुगात्रा:,

झटिति किल प्रबुद्धा: मार्जितसन्ध्यापात्रा:।

सततमिह नु वेदैः नष्टसंंतापमात्रा:,

सकलगुणगरिष्ठा: मालवीयस्य छात्रा:।।

हिन्दी- व्यायाम आदि व सूर्य नमस्कार आदि के अभ्यास से परिश्रम करते हुए स्फुर्त अंगों वाले छात्र हो, अल्पकाल में ही विद्या का अभ्यास कर लेने वाले प्रबुद्ध छात्र हो, जो की नित्य वह समुचित समय पर संध्या पात्रों का मार्जन करते हुए संध्या वंंदन करने वाले छात्र हों, वेद के नियमित अध्ययन से उनकी संतापना व क्लेशादि आदि की मात्रा नष्ट हो गई हो जिनकी इस प्रकार के मालवीय के छात्र हो।

विनोद कुमार शर्मा


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