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प्रकृति की शरण में चलें
प्रकृति की शरण में चलें
(प्राकृतिका: भवाम🙂
वैज्ञानिक उन्नति के साथ साथ ही मानव समाज को विभिन्न समस्याएं मुफ्त में मिली है आज हर कोई मानसिक तनाव खराब स्वास्थ्य के दौर से गुजर रहा है ऐसे में प्रकृति की शरण ही हमें बचा सकती है इसलिए हम प्रत्येक सकता है विभिन्न आयामों का प्रकल्प ओं के माध्यम से प्रकृति के साथ जुड़ने का महत्व साझा कर रहे हैं।
प्रथम सप्ताह का प्रकल्प “आयुर्वेदिक जीवन“
आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार हमारे दैनिक जीवन चर्या होनी चाहिए जागरण, शयन, संयम, भोजन, आसन, आचार- विचार आदि आयुर्वेद के अनुसार ही होने चाहिए। आयुर्वेद में वर्णित विभिन्न औषधियों का जीवन में उपयोग भारतीय संस्कृति रही है इसलिए उन्हें अपनाना चाहिए।
तुलसी का उपयोग व महत्व
तुलसी के नियमित उपयोग व महत्व पर चर्चा–
द्वितीय सप्ताह का प्रकल्प– “बच्चों को मिट्टी से जोड़े“
आज मोबाइल के युग में बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव किसी से छुपा नहीं है। चिकित्सकों के अनुसार बच्चों को मोबाइल फोन देना भयंकर नशा देने के समान है। इसलिए हमें उन्हें मिट्टी के साथ जोड़ना ही होगा मिट्टी से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
बच्चों को मोबाइल से दूर मिट्टी प्रकृति पेड़ पौधों से जोड़ने का प्रयास–
तृतीय सप्ताह का प्रकल्प– “गव्यपदार्थों का सेवन“ गौ-दुग्ध, गौमूत्र, गौबर,गौघृत का दैनिक प्रयोग आयुर्वेद में वर्णित है इसलिए हमें गव्य पदार्थों का पुनः उपयोग आरंभ करना चाहिए। गौ दुग्ध मानव मात्र के लिए अमृततुल्य है। गौ घृत सर्वोत्तम रसायनों में है, इसलिए हमें पुनः गव्य पदार्थों के सेवन को अपनाना चाहिए।
चतुर्थ सप्ताह का प्रकल्प– “स्वयं को सूर्य के साथ जोड़ें“
सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है इसलिए हमें प्रकृति की ओर लौटने के लिए खुद को सूर्य के साथ नियमित करना होगा सूर्योदय से पूर्व जागना भारतीय संस्कृति रही है इसलिए कम से कम सूर्योदय के बाद नहीं जागे सूर्योदय से पूर्व स्नान सूर्य अर्घ्य सूर्य नमस्कार आदित्य ह्रदय स्तोत्र स्तवन इत्यादि भारतीय परंपरागत नियमों का पालन करना चाहिए।
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