ज्ञान परम्परा में आनन्दवर्धन व ध्वनि

              आनन्दवर्धन के मत में ध्वनि

आनंदवर्धन ध्वनि के प्रवर्तक आचार्य कहे जाते हैं। आनंदवर्धन के अनुसार ध्वनि वह विशेष अर्थ है जो कि काव्य की आत्मा है। यह ध्वनि मुख्यार्थ से व लक्ष्यार्थ से सर्वथा भिन्न होती है। ध्वनि एक ऐसा प्रतिमान अर्थ है जो महाकवियों की वाणी में स्वत: होता है। यह अर्थ ध्वन्यार्थ कहलाता है। यह अर्थ केवल पद अथवा शब्द को जानने से अथवा व्याकरण के ज्ञान से उत्पन्न नहीं होता अपितु कोई ही काव्यशास्त्र मर्मज्ञ अथवा सह्रदय व्यक्ति ही इसका अनुभव करता है। आनंद वर्धन के ध्वनि सिद्धांत का खंडन करने वाले अनेक पक्ष व आचार्य उत्पन्न हुए हैं जिन्होंने कहा कि यह किसी अलंकार अथवा छंद को अथवा रीति को ही ध्वनि ध्वनि कह रहा होगा परंतु आनंद वर्धन ने अपने ध्वन्यालोक ग्रंथ में ध्वनि की स्थापना करते हुए कहा है कि ध्वनि अलंकारों से अथवा मुख्य अर्थ से अथवा लक्ष्य अर्थ से सर्वथा भिन्न है उन्होंने ध्वन्यार्थ की स्थापना करते हुए अन्य आचार्यों का भी खंडन किया है।

ध्वनि के दो भेद कहे गए हैं वाच्य व प्रतीयमान ।

     योऽर्थः सहृदयश्लाघ्यः काव्यात्मेति व्यवस्थितः

      वाच्यप्रतीयमानाख्यौ तस्य भेदावुभौ स्मृतौ

आनंद वर्धन ने ध्वन्यालोक में कहा है कि प्रतिमान अर्थ जो कि महाकवियों की वाणी में होता है वही ध्वन्यार्थ होता है ।यह उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार अंगनाओं में लावण्य रहता है।

प्रतीयमानं पुनरन्यदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम्

यत्तत्प्रसिद्धावयवातिरिक्तं विभाति लावण्यमिवाङ्गनासु

ध्वनि का ज्ञान केवल शब्द में अर्थ के अनुशासन को जानने मात्र से नहीं होता क्योंकि शब्द में अर्थ से केवल वाक्य अथवा पद को जाना जा सकता है परंतु ध्वनि को जानने के लिए काव्य के तत्वों को जानना आवश्यक है इसलिए आनंदवर्धन ने कहा है कि उस अर्थ को केवल काव्यतत्व मर्मज्ञ अथवा सह्रदय लोग ही जानते हैं-

         शब्दार्थशासनज्ञानमात्रेणैव वेद्यते

        वेद्यते तु काव्यार्थतत्त्वज्ञैरेव केवलम् ।।

आनंद वर्धन ध्वनि की एक अन्य परिभाषा बताते हुए कहते हैं कि  जहां पर शब्द अपने अर्थ को व अर्थ अपने आप को गौंण बना दें तब जो अन्य अर्थ उत्पन्न होता है उसको ध्वनि कहते हैं-

यत्रार्थः शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृतस्वार्थौ

व्यङ्क्तः काव्यविशेषः ध्वनिरिति सूरिभिः कथित:।।


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

en_USEnglish