कथाओं की परम्परा

काव्य साहित्य में कथा एक प्रकार की गद्य काव्य विधा है। गद्य काव्य में अनेक प्रकार की कथाएं लिखी गई है। पौराणिक कथाओं को भी कथा के रूप में सुनने का विधान है। इसलिए भारतीय संस्कृति में कथा साहित्य प्रसिद्ध हो गया व भागवत पुराण आदि कथाओं को साप्ताहिक रूप में सुनने का विधान चल पड़ा है ।महाभारत की उत्पत्ति व लेखन ही कथा के रूप में हुआ कथा के माध्यम से ही समस्त शास्त्रीय विधियो, समस्त शास्त्रीय नियमों, व परंपराओं का एक दूसरे तक प्रसार होता रहा । इसलिए कथा अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है । कथाओं का अपना इतिहास रहा है महाभारत के समय से ही शोनकादि ऋषियों के समय से ही कथा एक दूसरे तक पहुंचाई जाती रही है इसलिए कथा के माध्यम से दर्शन व धर्म भी प्रसारित होता रहा ।

वर्तमान में कथाओं व कथाकारों की स्थिति –

वर्तमान में कथाओं की स्थिति बड़ी विचित्र है कथाकारों ने जिस प्रकार से स्वयं को परिवर्तित कर दिया है वह दुखद है। कथाओं का मूल समाज तक नहीं पहुंच पा रहा है ।अभी तो कथा की जगह अन्य चीज ही पहुंच पा रही है अतः कथाओं से दार्शनिक तथ्य प्राय समाप्त हो गए हैं । कथाकार आज अकर्मण्य बना रहे हैं। कथा सुनकर व्यक्ति तृप्त ही नहीं होता है वर्तमान समय में अनेक बुजुर्ग लगातार अनेक वर्षों से कथाएं सुन रहे हैं, और उनको एक कथा का नशा सा हो गया है। वे कर्म मार्ग को छोड़ चुके हैं बुजुर्गों का जो काम था राम नाम माला जपना वह अपने पौत्रादि को सन्मार्ग हेतु कथा सुनाना वह उन्होंने त्याग दिया है बस केवल पूरे दिन टीवी अथवा मोबाइल के सामने बैठकर कथा सुनते रहते हैं सुनते ही रहते हैं सुनते ही रहते हैं वह कभी थकते ही नहीं और यह क्रम का चलता ही रहता है। इस प्रकार से कथाकार एक नशे में डुबोकर के कर्म के सिद्धांत से बुजुर्गों को दूर करते जा रहे हैं जो की चिंता है।


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