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Jantar-MantarObservatory of Swaijai singh. जन्तर मन्तर
जन्तर मन्तर
सवाई जयसिंह ने देश के पांच स्थानों पर वेधशालाओं का निर्माण करवाया। इन्हीं वेधशालाओं को यंत्र मंदिर व वर्तमान में जंतर मंतर भी कहा जाता है। वस्तुतः जंतर मंतर शब्द अपभ्रंश रूप है इसका शुद्ध शब्द है यंत्र मंदिर। यंत्र को ही राजस्थानी भाषा में जन्तर कहा जाने लगा, अर्थात यह शब्द बन गया जंतर मंदिर। यह धीरे-धीरे अपभ्रंश रूप को प्राप्त होता हुआ जंतर मंतर कहलाने लगा। जंतर मंतर का संस्कृत शब्द ही वेधशाला कहा जाता है। वेधशाला शब्द का अर्थ है वह स्थान जहां से ग्रहों का वेध किया जा सकता हो। वेध शब्द का अर्थ- आकाश में घूम रहे हुए किसी भी ग्रह को किसी यंत्र की सहायता से जानना वेध कहलाता है।
वेधशालाएं कहां-कहां पर स्थित है –
सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित वेधशालायें देश के पांच स्थानों पर स्थित है। जिनमें जयपुर, उज्जैन, दिल्ली, मथुरा, वाराणसी में सवाई जयसिंह ने सन 1724 से लेकर के 35 के मध्य में देश के विभिन्न स्थानों में वेधशालाओं का निर्माण करवाया था।
वेधशालाओं का उद्देश्य –
वेधशालाओं का उद्देश्य है आकाश में घूम रहे ग्रहों को जानना । वस्तुतः आकाश में घूम रहे ग्रहों को जानने की दो प्रक्रिया अथवा सिद्धांत है। जिनमें एक सिद्धांत है गणित के द्वारा ग्रहों को जानना व दूसरा सिद्धांत है आकाश में घूम रहे ग्रहों को देखना । यह पद्धति दृक् सिद्धपद्धति कहलाती है। अथार्त दृष्टि से ही देखना दृक-सिद्ध ग्रह कहलाता है। भारतीय पंचांग दृक- सिद्ध पंचांग कहलाते हैं। भारतीय तीज –त्यौहार, व्रत, उत्सव आदि समस्त पर्व में काम आने वाला भारतीय पंचांग गणित के साथ-साथ में वेधशालाओं से भी शुद्ध किया जाता है। पंचांगों की शुद्धता का परीक्षण करना ही वेधशालाओं के निर्माण का मुख्य उद्देश्य है।
सवाई जयसिंह की वेधशालाओं के निर्माण में सम्राट जगन्नाथ व गोकुलचंद्र भावन का महत्वपूर्ण योगदान है। वेधशालाओं में विभिन्न प्रकार के प्रस्तर यंत्र रखे गए हैं -जैसे सम्राट यंत्र ,राम यंत्र, नाडी यंत्र, जय प्रकाश यंत्र ,राशि वलय यंत्र आदि।
वेधशाला के यंत्रों का परिचय–
सवाईजयसिंह की वेधशालाओं में बने हुए यंत्रों में प्राय सभी जगह यंत्र एक ही प्रकार की दिखाई पड़ते हैं परंतु इन सभी यंत्रों के निर्माण में वहां के स्थानीय अक्षांशों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अक्षांशों को आधार बनाकर ही इन सभी यन्त्रों का निर्माण किया जाता है। इसके साथ-साथ ही जिस स्थान पर यंत्रों का निर्माण किया जाना हो उस स्थान की आकाश की स्थिति भी बहुत महत्वपूर्ण है। प्राय जिस स्थान पर पूरे वर्ष भर आकाश मेघ आदि से स्वच्छ रहता हो वहां इन यंत्रों का निर्माण ज्यादा सफल है। क्योंकि ये सभी यंत्र छाया यंत्र कहलाते हैं। अथार्त उनकी छाया उत्पन्न होगी तभी यह काम करते हैं ।छाया के बिना इन यंत्रों का कार्य करना उतना सफल नहीं है। इन यंत्रों के द्वारा आकाश में घूम रहे हैं ग्रह की खगोलीय स्थिति का ज्ञान होता है इसके अतिरिक्त उत्तरायण दक्षिणायन सूर्य की उत्तर गति दक्षिण गति, अक्षांश रेखांश, ग्रहों के उदयास्त ,क्रांति, उदय बिंदु ,अस्त्त बिंदु आदि अनेक खगोलीय तथ्यों का ज्ञान होता है।
वेधशालाओं की वर्तमान स्थिति –
वेधशालाएं भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रतीक है ।वेधशालाएं भारतीय खगोल शास्त्र ,गणित शास्त्र ,नक्षत्र विद्या,व वास्तु शास्त्र का प्रतीक है। इन वेधशालाएं में बने हुए यंत्र आज भी यथावत काम कर रहे हैं। ये भारत के ज्ञान का गौरव है। इन वेधशालाओं में जयपुर व दिल्ही की वेधशाला सबसे बड़ी है। इनमें जयपुर की वेधशाला के यंत्र पूर्ण रूप से शुद्ध परिमाण उपलब्ध करा रहे हैं। मथुरा की वेधशाला नष्ट हो चुकी है । वाराणसी के वेधशाला में कुछ यंत्र सुरक्षित है। उज्जैनी की वेधशाला में भी अधिकांश यंत्र सुरक्षित है ।उज्जैन की वेधशाला का अपना महत्व है क्योंकि उज्जैन स्वयं काल की नगरी है व यह संपूर्ण पृथ्वी के केंद्र में स्थित नगरी कही गई है।
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