वेदांग परिचय

वेदांग परिचय

ज्ञान के समूह को वेद कहा गया है वेदों का विभाजन वेद व्यास ने चार भागों में किया ,जिनका नाम है क्रमशः ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद व अथर्ववेद। इन वेदों के छह अंग कह गए हैं इन 6 अंगों में क्रमशः है व्याकरण, निरुक्त, कल्प, ज्योतिष, छन्द, व शिक्षा है। ये छ अंग वेद को पूर्ण बनाते हैं। वेद रूपी पुरुष के यह छह अंग विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं ,जैसे व्याकरण वेद पुरुष का मुख है, निरुक्त वेद पुरुष के कर्ण है, शिक्षा वेद पुरुष की नासिका है, ज्योतिष वेद पुरुष की आंखें हैं, छन्द वेद पुरुष के चरण है व  कल्प वेद पुरुष के दोनों हाथ है। इसी प्रकार ये  छ अंग वेद पुरुष के विभिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आचार्यों ने इन्हीं 6 अंगों के सहित वेद के अध्ययन का महत्व प्रतिपादित किया है । इन 6 अंगों का संक्षिप्त परिचय क्रमशः प्रस्तुत है

व्याकरण

व्याकरण शास्त्र सभी 6 अंगों में प्रधान व मुख्य कहा गया है क्योंकि बिना व्याकरण के अध्ययन के अन्य अंगों का व वेद व काव्य शास्त्रों का अध्ययन संभव नहीं है। इसलिए व्याकरण को प्रधान कहा गया है। व्याकरण में शब्दों की उत्पत्ति व व्युत्पत्ति की जाती है। व्याकरण के ग्रंथों में पाणिनि विरचित अष्टाध्यायी प्रसिद्ध है । पाणिनि ने समस्त शब्दों का प्रत्याहार की रीति से अनुशासन किया है।

कल्प

वेद के अन्य अंगों में कल्प भी एक अंग है जो की वेद पुरुष के हाथ के रूप में प्रसिद्ध है। कल्प यज्ञों के प्रयोग को दर्शाता है। कल्प विभिन्न सूत्रों में बंधा हुआ है, इन सूत्रों में विभिन्न संस्कारों विभिन्न आश्रमों वह यज्ञ की विधियो का वर्णन है।

निरुक्त

वेद पुरुष के अंगों में निरुक्त कर्ण स्थानीय है। निरुक्त को व्याकरण का संपूर्ण भाग कहा गया है ।निरुक्त के बिना वैदिक शब्दों का अर्थ संभव नही है। जिस प्रकार व्याकरण शब्दों की उत्पत्ति बताता है। इस तरह निरुक्त शब्दों का निर्वचन बताता है। निरुक्त में वैदिक शब्दों का संग्रह, वैदिक शब्दों की व्याख्याएं , देवताओं के निर्वचन कह गए हैं।

ज्योतिष

यह वेद पुरुष की चक्षु रूप में प्रसिद्ध है। ज्योतिष काल शास्त्र के रूप में प्रसिद्ध है । ज्योतिष के तीन भाग है जिनमें सिद्धांत होरा व संहिता है। ज्योतिष शास्त्र काल के विभिन्न अवयवों को बताता है ।इसके साथ ही काल शब्द व्यापक है । सृष्टि का आरंभ से लेकर सृष्टि के अंत तक के काल को यह दर्शाता है। लोगों के शुभ व अशुभ फल का परिकल्पन भी इस अंग के द्वारा किया जाता है।

शिक्षा

वैदिक मन्त्रों के उच्चारण के लिए स्वर, वर्ण आदि का उच्चारण प्रकार जहां सिखाए जाते हैं उसे शिक्षा कहा जाता है । वेद के विभिन्न सूक्तों के उच्चारण के लिए विभिन्न प्रकार के शिक्षा ग्रन्थ प्रसिद्ध है। जैसे पाणिनीय शिक्षा जैसे याज्ञवल्क्य  शिक्षा।

छन्द

वैदिक मन्त्रों को लयपूर्वक गाने हेतु विधि व नियमावली का  प्रतिपादन करना छंद शास्त्र का काम हैं।


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