भारतीय संस्कृति व  “ब्रह्मचर्य” :-

                                                                                                विद्याध्ययन की गुरुकुल परम्पराओं में छात्रों हेतु अनिवार्य नियम, ब्रह्मचर्य रहा है। ब्रह्मचर्य के बिना जीवन की अन्य अवस्थाओं का दुखयुक्त होना निश्चित है, इसलिये श्रौतसूत्रों  व धर्मग्रन्थों में ब्रह्मचर्य को प्रथम आश्रम माना गया है। मानव जीवन के प्रमुख उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु ही ब्रह्मचर्य की अवधारणा स्थापित है। भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते है..

यदिच्छन्तोब्रह्मचर्यं चरन्ति

तत्ते पद संग्रहेण प्रवक्ष्ये1

वर्तमान शिक्षा ब्रह्मचर्य

वस्तुतः समस्त शिक्षाओं व विद्याभ्यासों का उद्देश्य चरित्र निर्माण है, परन्तु आधुनिक युग में यह उद्देश्य ही पीछे छूट रहा है। विश्वविद्यालयों में चारित्रिक प्रदूषण बढते चले जा रहें है, चरित्र व ब्रह्मचर्य की बातें तो मानो मजाक का विषय बन कर रह गयी है। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी भी विद्याध्ययन के प्रमुख उद्देश्य से भटक कर तनाव व मानसिक संताप जैसी अवस्थाओं को प्राप्त कर रहे हैं।

गीता में ब्रह्मचर्य का उपदेश

 ऐसी स्थिति में गीता ज्ञान परम सहायक है। गीता के दर्शन में हर किसी को धर्मपालन हेतु कहा गया है। छात्रों को भी छात्रत्व (छात्र धर्म) का पालन करना चाहिये जिसमें सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य ही है। भारतीय संस्कृति में छात्र जीवन की शुरुआत ब्रह्मचर्य से ही मानी गई है व श्रीमद्भगवद्गीता में भी इसका संकेत प्राप्त होता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को शिष्य के रूप में स्वीकार करते हुए ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी है।

“यदिच्छन्तोब्रह्मचर्यं चरन्ति ।

   तत्ते पद संग्रहेण प्रवक्ष्ये” ॥1॥

ब्रह्मचर्य के भेद अवस्था

धर्म शास्त्रों में ब्रह्मचर्य के दो प्रमुख भेद कह गए हैं जिनमें उपकुर्वाण व नेष्टिक है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मचर्य की सर्वोच्च  अवस्था को उर्ध्वरेता ब्रह्मचारी कहा गया है। उर्दू रहता ब्रह्मचारियों की श्रेणी में नारद सुखदेव हनुमान भीष्म पितामह आदि महापुरुष आते हैं।

नास्तिक ब्रह्मचारी का अर्थ है विवाह पर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन जबकि कुर्वान ब्रह्मचारी का अर्थ है आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना।

ब्रह्मचर्य के लाभ

भारतीय संस्कृति में उत्पन्न अनेक महानुभावों ने ब्रह्मचर्य की प्रशंसा की है वह स्वयं के जीवन में इसे उतारने का प्रयास किया है निकट भूत में ही उत्पन्न है स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्मचर्य पालन का उपदेश दिया था महात्मा गांधी ने भी इसे अपने जीवन में अपनाया है ब्रह्मचर्य के पालन से मनुष्य का जीवन और से परिपूर्ण होकर के जीवन के अनजाने उद्देश्यों की पूर्ति में सरल हो जाता है इसके अतिरिक्त वर्तमान में समा उत्पन्न हो रही चारित्रिक समस्याओं में व्यभिचारों का भी अंतिम समाधान ब्रह्मचर्य ही है।


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