अष्टांग योग व आसन का परिचय

   अष्टांग योग व आसन का परिचय

भारतीय संस्कृति में योग का महत्व है। योग दर्शन मानव को उत्तम जीवन की प्रेरणा प्रदान करता है। योग दर्शन के प्रमुख ग्रंथों में पतंजलि विरचित योग सूत्रों का भी महत्व है । इन योग सूत्रों में आसन से लेकर अष्टांग योग का अत्यधिक महत्व है ।अष्टांगों में यम,  नियम,  आसन , प्राणायाम,  प्रत्याहार, धारणा,  ध्यान व समाधि क्रमशः है। इन अष्टांगों का उद्देश्य अंतत: समाधि ही है। यह आठ अंग एक दूसरे के प्रति कारण बनते हैं ।

                  योग के ८ अंग –

यम,  नियम,  आसन , प्राणायाम,  प्रत्याहार, धारणा,  ध्यान व समाधि

 यम-

 अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रम्हचर्य अपरिग्रह

 नियम-

शौच संतोष तप स्वाध्याय इश्वर अप्रनिधान

 आसन-

इन आठ अंगों में आजकल आसन का ही अत्यधिक प्रचलन दिखाई पड़ रहा है । इसलिए इसका विशेष परिचय जानना आवश्यक है। आसन शब्द का शास्त्रीय अर्थ है-“ स्थिर सुखमा –सनम” अर्थात जिसमें जिस अवस्था में सुखपूर्वक स्थिरता की अनुभूति हो वही आसान है । इस आसन के अभ्यास हेतु एक आधारभूत आसान होना आवश्यक है । यह आसन किसी कम्बल वस्त्र का हो सकता है अथवा कपास वस्त्र का हो सकता है, ऊन का बना हुआ आसन अथवा दूर्वा का हो सकता है। अथवा सर्वोत्तम आसन कुश का कहा गया है इसे कुशासन भी कहते हैं। सीमेंटेड आसन अथवा वज्र शिलाओं का आसान सर्वथा वर्जित कहा गया है। आसन हमारे  शरीर के तापमान व ऊर्जा को बहने से रोकता है । इसलिए आसन का अत्यधिक महत्व है।


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