शूद्रक व मृच्छकटिक की संक्षिप्त-कथा

 इस प्रकरण में १० अंक हैं। यह रूपक का एक भेद ‘प्रकरण’ है। इसमें एक निर्धन ब्राह्मण चारुदत्त ( सामान्य नायक धीर प्रशांत प्रकृति   )का वसन्तसेना नामक गणिका (वेश्या) से प्रेम-वर्णन है। अन्त में दोनों का प्रेम सफल होता है और वसन्तसेना का चारुदत्त से विवाह होता है। साथ ही पालक’ नामक राजा को मार कर आर्यक के राजा होने का वर्णन । अंकों के अनुसार संक्षिप्त कथा इस प्रकार है :

(अंक १) इस अंक का नाम ‘अलंकार-न्यास’ है। राजा का साला शकार वसन्तसेना पर अनुरक्त है और उसे पकड़ने के लिए उसका अँधेरी रात में पीछा करता है। वह चारुदत्त के घर में घुस जाती है और अपने प्रेमी  चारुदत्त से वार्तालाप करती है तथा धूर्तों से बचने के लिए अपने गहने उतार कर उसके पासछोड़ देती है।

(अंक २) इस अंक का नाम द्यूतकर-संवाहक है। चारुदत्त का एक सेवक संवाहक जुए में ऋणी होकर वसन्तसेना के पास आता है। वह उसे धन देकर ऋण-मुक्त करती है। वह संवाहक बौद्ध भिक्षुक बन जाता है।

 (अंक ३) इस अंक का नाम ‘सन्धिच्छेद’  शर्विलक चारुदत्त के मकान में सेंध लगाता है और वसन्तसेना के आभूषण चारुदत्त के घर से चुरा ले जाता है। चारुदत्त की पत्नी धूता उन आभूषणों के बदले में अपनी रत्न-माला देती है। विदूषक उसे वसन्तसेना के पास ले जाता है।

 (अंक ४) इस अंक का नाम ‘मदनिका-शर्विलक’ है। शर्विलक वसन्तसेना के चुराए आभूषण वसन्तसेना को देकर अपनी प्रेयसी मदनिका को मुक्त कराता है और उसे वधू बनाता है।  विदूषक धूता की रत्नमाला वसन्तसेना के पास पहुँचाता है। वसंतसेना  मदनिका के व्यवहार से प्रसन्न होती हैं व सारा प्रकरण समझ जाती है वह मदनिका को वधू के रूप में स्वीकार कर लेती है ।वसन्तसेना रात्रि में चारुदत्त से मिलने आने का सन्देश भेजती है।

 (अंक ५) इस अंक का नाम ‘दुर्दिन’ है। इसमें आंधी झंझावात व वर्षा का सुन्दर प्राकृतिक वर्णन है। वसन्तसेना चारुदत्त के घर ही वह रात्रि बिताती है।

 (अंक ६) इस अंक का नाम ‘प्रवहण-विपर्यय’ (गाड़ी बदलना) है। अगले दिन प्रातः वसन्तसेना चारुदत्त की पत्नी को उसकी रत्नमाला लौटाना चाहती है, परन्तु वह उसे स्वीकार नहीं करती । चारुदत्त का पुत्र रोहसेन मिट्टी की गाड़ी (मृत्–मिट्टी, शकटिका- गाड़ी) लिए हुए आता है और शिकायत करता है कि उसे सोने की गाड़ी चाहिए। वसन्तसेना उसकी गाड़ी पर अपने आभूषण रख देती है, जिससे वह सोने की गाड़ी खरीद सके । वसन्तसेना को अपने प्रेमी चारुदत्त से मिलने उद्यान में जाना है । वह भूल से वहीं खड़ी शकार की गाड़ी पर सवार हो जाती है। आर्यक जेल से भागा हुआ है और शरण चाहता है। वह वसन्तसेना के लिए खड़ी चारुदत्त की गाड़ी पर बैठ जाता है। मार्ग में चन्दनक नामक एक सिपाही आर्यक को अभयदान देकर उसकी गाड़ी आगे जाने देता है।

(अंक ७) इस अंक का नाम ‘आर्यकापहरण’  है। आर्यक उद्यान में चारुदत्त से मिलता है। चारुदत्त उसे अभयदान देता है और उसके बन्धन कटवाकर उसे गाड़ी में उसे विदा करता है।

(अंक ८) इस अंक का नाम ‘वसन्तसेना मोटनम् ह। वसन्तसेना उद्यान में पहुँचती है। शकार उससे प्रणय-निवेदन करता है। प्रणय अस्वीकार करने पर वह वसन्तसेना का गला घोंटता है। उसे मरा समझ कर पत्तों से ढंक देता है और चारुदत्त पर वसन्तसेना की हत्या का मुकदमा चलाने के लिए न्यायालय जाता है। बौद्ध भिक्षुक संवाहक वहाँ आता है और वसन्तसेना को मृतप्राय देखकर उसकी सेवा करके उसे पुनर्जीवित करता है।

 (अंक 9) इस अंक का नाम ‘व्यवहार’ (न्यायालय) है। शकार चारुदत्त के विरुद्ध अभियोग चलाता है। चारुदत्त बुलाया जाता है। बालक रोहसेन को दिए आभूषण लौटाने के लिए विदूषक वसन्तसेना के पास जा रहा है। उसके पास से आभूषण निकलने से सिद्ध हो जाता आभूषणों के लिए चारुदत्त ने वसन्तसेना की हत्या की है। चारुदत्त को

मृत्युदण्ड दिया जाता है।

 (अंक १०) इस अंक का नाम ‘संहार’ (उपसंहार) है। राजा पालक को मारकर आर्यक राजा हो जाता है। वह वध के लिए प्रस्तुत चारुदत्त को  मसान की ओर ले जाते हैं इसी बीच बौद्ध भिक्षु संवाहक वसंतसेना को लेकर वहां उपस्थित हो जाता है और शकार पर अभियोग लगाया जाता है और चारूदत्त के स्थान पर शकार को फांसी की सजा सुनाते हैं चारुदत्त का वसन्तसेना से पुनर्मिलन होता है। वसन्तसेना चारुदत्त की वधू बनती है। चारुदत्त शकार को क्षमा कर देता है। इस प्रकार चारुदत्त-वसन्तसेना के विवाह के साथ कथा समाप्त होती है।


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