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योगसूत्र, यम व नियम
(योग यम व नियम)
योग शास्त्र भारतीय महर्षियों का अनुपम उपहार है। योग शास्त्र में अष्टांग योग के माध्यम से देह से परम तत्व व पिंड से ब्रह्मांड तक को जाना जा सकता है। भारतीय व महर्षियों आचार्यों ने योग परंपरा के दम पर ही अपने शरीर में ही ग्रह नक्षत्रों की गति तक को जान लिया था। योग के प्रवर्तक पतंजलि मुनि ने योगसूत्र के 4 पादों में विभिन्न सूत्रों के माध्यम से संपूर्ण योग शास्त्र को समझाया है। योग सूत्र के पादों के नाम-
समाधिपाद,
साधनपाद,
विभूतिपाद व
केवल्यपाद
समाधि पाद- समाधि पाद में उन सूत्रों का वर्णन किया गया है जिनमें जन्म से ही व्यक्ति को सिद्ध समाधि होती है। यह समाधि पूर्वजन्म में किए गए विभिन्न तत्वों कर्मों व समाधि के प्रयासों का परिणाम होती है जो कि उस जन्म में समाधि संभव नहीं हुई परंतु इस जन्म में जन्म से ही समाधि सिद्ध हुई है। जिन लोगों को जन्म से समाधि सिद्ध नहीं है उन्हें विभिन्न साधनों के प्रयोग से समाधि की तरफ जाना होता है और उन साधनों का वर्णन साधन पाद में किया गया है।साधन पाद में अष्टांग योग के साधन बताए गए हैं जिनमें यम,नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,धारणा, ध्यान, समाधि इन 8 योग के अंगों के माध्यम से समाधि तक पहुंचा जा सकता है। जिन मनुष्यों को साधनों पर भी विश्वास नहीं हो वे मनुष्य विभूतियों के दर्शन के माध्यम से योग से जुड़े इसलिए विभूति योग है। विभूति पाद में विभिन्न प्रकार की विभूतियों अर्थात चमत्कारों की बात कही गई है। इन चमत्कारों के भी त्याग के बाद में केवल्य की प्राप्ति होती है। जिसकी चर्चा केवल्यपाद में की गई है। इस प्रकार यह जो समाधि है वह समाधि दो प्रकार की कही गई है, सबीज समाधि व निर्बीज समाधि। सबीज समाधि में मनुष्य पुनः संसार की तरफ लौट आता है जबकि निर्बीज समाधि में एक भुने हुए बीज की तरह है व्यक्ति पुनः संसार में नहीं लौटता।
यम– अष्टांग योग में प्रथम अंग यम है इसके भी 5 भाग है जिनमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह है।
नियम– सोच संतोष तक स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान ये पांच नियम कहे गए हैं। अष्टांग योग बोधक चित्र-
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