महाभारत एक परिचय

“  नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्

महर्षि पाराशर और माता सत्यवती के कनीन पुत्र वेदव्यास द्वारा रचित एवं भगवान श्री गणेश द्वारा लिखित यह महाभारत ग्रंथ संपूर्ण विश्व के लिए ज्ञान का स्रोत है ।

महाभारत ज्ञान का प्रकाश पुंज है जिसमें विश्व के हर एक विषय पर प्रकाश डाला गया है ।

 महाभारत का विकास तीन चरणों में हुआ है –

 जय , भारत और महाभारत ।

   जय नामेतिहासोऽयम्  जय इसमें 88000 श्लोक थे ।

भारत इसमें 24000 श्लोक द महाभारत में एक लाख श्लोक है इसलिए इसको शतसाहस्रीसंहिता भी कहते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि जो कुछ महाभारत में है वह भारत में है और जो महाभारत में नहीं है वह भारत में भी नहीं है ।

                 “ यन्न भारते तन्न भारते

 यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति तत् क्वचित्

महाभारत का विभाजन

 जो कोई भी कवि , महाकवि , मुनि , महर्षि आदि अपनी रचनाओं को लिखना है वह अपनी रचनाओं को पाठकों की सरलता के लिए अध्यायों , सर्गों , कांडों आदि में विभक्त करता है । यहां महर्षि वेदव्यास ने महाभारत को पर्वों में विभक्त किया है। महाभारत में कुल पर 18 है जिनके नाम है-

आदिपर्व, सभापर्व, अरयण्कपर्व, विराटपर्व, उद्योगपर्व, भीष्मपर्व, द्रोणपर्व, कर्णपर्व, शल्यपर्व, सौप्तिकपर्व, स्त्रीपर्व, शांतिपर्व, अनुशासनपर्व, अश्वमेधिकापर्व, आश्रमवासिकापर्व, मौसलपर्व, महाप्रस्थानिकपर्व, स्वर्गारोहणपर्व ।

इन 18 पर्वों की विषय वस्तु को जानने के लिए इनका संक्षिप्त परिचय आवश्यक है लेकिन इससे पहले आपको पर्व शब्द का अर्थ समझना होगा । व्याकरण शास्त्र में पर्व का अर्थ अध्याय किया गया है । यह अध्याय आदि और अंत सहित स्वयं में पूर्ण होते हैं । अब इन पर्वों की विषय वस्तु को संक्षिप्त रूप में जानते हैं :-

  1. आदि पर्व :- इस पर्व में राजकुमारों के जन्म और उनकी बाल क्रीड़ाओं का वर्णन है ।
  2. सभा पर्व :- इस पर्व में द्युत क्रीड़ा का वर्णन है और पांडवों का वन गमन है ।
  3. वन पर्व :- 12 वर्षों के मिले वनवास का वर्णन ।
  4. विराट पर्व :- 1 वर्ष का अज्ञातवास राजा विराट के राज्य में व्यतीत ।
  5. उद्योग पर्व :- श्री कृष्ण का शांति दूत बनकर कौरवों के पास जाना ।
  6. भीष्म पर्व :- गीता का उपदेश ।
  7. द्रोण पर्व :- द्रोणाचार्य का सेनापति बनना।
  8. कर्ण पर्व :- कर्ण का सेनापति बनना।
  9. शल्य पर्व :- शल्य का सेनापति बनना ।
  10. सौप्तिक पर्व :- सोए हुए पांडवों के पुत्रों को मारना और अश्वत्थामा की मणि निकलना आदि।
  11. स्त्री पर्व :- गांधारी व अन्य स्त्रियों द्वारा मृत लोगों के लिए शोक करना एवं गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को शाप देना ।
  12. शांति पर्व :- युधिष्ठिर का राज्याभिषेक ।
  13. अनुशासन पर्व :- भीष्म का स्वर्ग आरोहण विष्णु सहस्त्रनाम शिव सहस्त्रनाम ।
  14. अश्वमेधिक पर्व :- युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन ।
  15. आश्रमवासिक पर्व :- धृतराष्ट्र गांधारी और कुंती का आश्रम के लिए प्रस्थान ।
  16. मौसल पर्व :- यादवों का विनाश , श्री कृष्ण का परमधाम गमन ।
  17. महाप्रस्थानिक पर्व :- पांडवों की हिमालय यात्रा ।
  18. स्वर्गारोहन पर्व :- पांडवों की स्वर्ग यात्रा ।

महाभारत एक विशाल का एक ग्रंथ है विश्व में ऐसा कोई ग्रंथ नहीं जो इस ग्रंथ की विशालता ज्ञान और विज्ञान की क्षमता कर सके ।

महाभारत ग्रंथ में वेदव्यास ने वेदों एवं उपनिषदों के गुढतम तत्वों का सरलता के साथ निरूपण किया है । इसलिए इसको पंचम वेद भी कहा जाता है ।

परवर्ती कवियों के लिए प्रेरणादायक :-

अनेक कवि महाकवियों ने महाभारत को आधार मानकर नाटक महाकाव्य चंपू काव्य आदि अनेकों रचनाओं की है :-

महाकाव्य :- 

  • किरातार्जुनीयम्      –     भारवि
  • शिशुपालवधम्        –     माघ
  • नैषधीयचरितम्        –     श्रीहर्ष

नाटक :-

  • अभिज्ञानशाकुन्तलम्    –  कालिदास
  • वेणीसंहारम्               –  भट्टनारायण
  • दुतघटोत्कचम्            –    भास
  • दूतवाक्यम्                –    भास
  • कर्णभारम्                 –    भास
  • पञ्चरात्रम्                –     भास
  • ऊरुभङ्गम्                 –     भास

चम्पूकाव्य :-

  • नलचम्पू              –        त्रिविक्रमभट्ट
  • भारतचम्पू           –         अनन्तभट्ट

इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ में शिक्षा , चिकित्सा , न्याय, युद्धनीती , शिल्पशास्त्र,  योगशास्त्र , ज्योतिष , अर्थशास्त्र,  वास्तुशास्त्र , कामशास्त्र , खगोलशास्त्र तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तृत वर्णन मिलता है ।

वेदे रामायणे पुण्ये भारते भरतर्षभ

आदौ चान्ते मध्ये हरिः सर्वत्र गीयते

भारत श्रवणे राजन् पारणे नृपोत्तम्

सदा यत्नवता भाव्यं श्रेयस्तु परमिच्छता

अर्थात् – हे भरतर्षभ !  वेद , रामायण और पवित्र महाभारत – इन सब में आदि , मध्य और अंत में सर्वत्र श्री हरि का ही कीर्तन किया जाता है ।अतः हे नृपश्रेष्ठ !  उत्तम श्रेय मोक्ष की इच्छा रखने वाले प्रत्येक पुरुष को महाभारत का श्रवण और पारायण करने में सदा प्रयत्नवान् रहना चाहिए ।

Rajkumar


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