भारतीय संस्कृति में जन्मोत्सव/ जन्मदिन की परम्परा-

जन्मोत्सव अथवा जन्मदिवस के अभिनंदन की परम्परा विशुद्ध रूप से भारतीय है। भारतीय शास्त्रों में इसके प्रमाण प्राप्त होते है। कवि कुलगुरू कालिदास विरचित कुमारसंभव में एक पंक्ति प्राप्त होती है जिसमें भगवान शंकर पार्वती के जन्मोत्सव की बात करते हैं, इसके अतिरिक्त संस्कृत नाटकों में भी जन्मोत्सव के प्रमाण प्राप्त होते हैं। उत्तर रामचरित्र में भी सीता लव कुश के जन्मोत्सव के अभिनंदन हेतु गोदावरी नदी के तट पर जाती है जहां वह सूर्य पूजन व नदी पूजन करके जन्मोत्सव से संबंधित उपचार संपन्न करती है।

वर्तमान समय में जन्मदिवस की परम्परा

वर्तमान समय में संपूर्ण भारतवर्ष में जन्म दिवस की आधुनिक परंपराएं चल पड़ी है। इसके अनुसार केक मोमबत्ती इत्यादि का प्रचलन हो गया है परंतु यह भारतीय परंपराएं है ही नहीं। भारतीय जन्मोत्सव की परंपराएं तिथि के अनुसार भारतीय पंचांग के अनुसार संपन्न होती है। इसके प्रमाण स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद अष्टमी को संपन्न होती है, गणेश जी का जन्म दिवस गणेश चतुर्थी को संपन्न होता है,श्रीराम जी का जन्म दिवस रामनवमी को संपन्न होता है, दुर्गा का जन्मदिवस दुर्गा अष्टमी को संपन्न होता है । इससे यह स्पष्ट है कि भारत में जन्म दिवस की परंपराएं तिथि के अनुसार ही संपन्न होती है। वस्तुतः तिथि के अनुसार जन्म दिवस मनाने से खगोलीय स्थिति भी उसी दिन के अनुसार होती है जिस दिन उस व्यक्ति का अथवा बालक का जन्म हुआ है ।उदाहरण के तौर पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी को जो रोहिणी नक्षत्र है वह रोहिणी नक्षत्र भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन आकाश में संयुक्त होता है। वर्तमान में संपन्न किए जाने वाले जन्मदिन में अथवा बर्थडे में जो की पाश्चात्य कैलेंडर से संपन्न होता है उसमें खगोलीय स्थिति का कोई संयोग नहीं होता तथा यह है संपूर्ण रूप से अवैज्ञानिक परंपरा है। जन्म दिवस भारतीय पंचांग के अनुसार संपन्न करने में ही वैज्ञानिकता है।

भारतीय परंपराओं के अनुसार जन्मदिवस संपन्न करने की विधि व रीति

जन्मदिवस संपन्न करने के विषय में हमारे समक्ष रामायण आधारित संस्कृत नाटक प्रमाण है जिनमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख है कि सीता वाल्मीकि के आश्रम में रहती हुई भी अपने पुत्रों की जन्म दिवस को संपन्न करने हेतु भगवती गोदावरी के समक्ष जाती है व सूर्य पूजन,नदी पूजन संपन्न करती है । इसका अर्थ यह है कि जन्म दिवस में जल स्रोतों व सूर्य के सहित अन्य देवताओं व पितृ देवादि का पूजन संपन्न करना चाहिए।


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