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भारतीय संस्कृति के प्रसार में प्राच्य विद्या संस्थाओं का योगदान
भारतीय संस्कृति के प्रसार में प्राच्य विद्या संस्थाओं का योगदान
अनेक वर्षों की पाश्चात्त्य दासताओं से धूलि-धूसरित हो चुकी भारतीय संस्कृति, इतिहास, ललित कला व साहित्य को पुनः प्रक्षालन करके स्थापित करने में प्राच्यविद्या संस्थानों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। अनेक शब्दकोषों व प्राच्य विद्या के विद्वानों के मतानुसार प्राच्य देशों विशेषत: भारत के अतीत से संबंधित विद्याओं का अध्ययन ही प्राच्य विद्या संस्थानों का मुख्य उद्देश्य रहा है। आरम्भ में भारतीय विद्याओं की अनेक शाखाओं से संबंधित अनुवाद कार्यों के उद्देश्य से बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना 1784 में हुई, उसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय, हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, इलाहाबाद , पटना, नागपुर ,पुणे, सागर, बड़ौदा तथा मद्रास विश्वविद्यालय से संबंधित संस्थानों ने प्राच्य विद्याओं के क्षेत्रों में कार्य करना आरम्भ किया। इसी क्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान ने प्राच्यविद्या से सम्बन्धित सामग्री को संग्रहित करके उपयोगी ग्रंन्थ सूचियां प्रकाशित की है। उनके प्रयासों से प्राच्य विद्या की विविध शाखाओं से सम्बन्धित बहुत से आंकड़े उपलब्ध हुए है जो महत्वपूर्ण है। प्राच्य विद्या संस्थानों के महत्त्वपूर्ण प्रयासों से ही रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों के शुद्ध संस्करण उपलब्ध है। प्राच्य विद्या संस्थानों के द्वारा किए गए अनुवाद कार्यों के कारण ही भारतीय ज्ञान का वैश्विक प्रसार सम्भव हुआ है।
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