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गृहप्रवेश का सामान्य परिचय
गृहप्रवेश का सामान्य परिचय
गृहप्रवेश व गृहारम्भ में अन्तर –
गृहप्रवेश और गृहारम्भ दोनों ही अलग-अलग विषय है। गृहारम्भ में घर के निर्माण का आरम्भ किया जाता है, जबकि गृहप्रवेश में घर में निवास के लिए प्रवेश किया जाता है। गृहारम्भ हेतु शुभ मुहूर्त में नींव की खुदाई करके 5 शिलाओं के पूजन के पश्चात् स्थापना की जाती है, इसलिए गृहारम्भ को नींवस्थापना, शिलापूजन, या नींवपूजन भी कहते हैं। घर के बन जाने के बाद पुनः शुभ मुहूर्त में घर में निवास के लिए विधिवत् प्रवेश किया जाता है। इसे गृहप्रवेश का नाम दिया गया है।
गृहप्रवेश की विधि →
गृहप्रवेश की प्रक्रिया कर्मकाण्ड की विधि के अनुसार सम्पन्न होती है। गणेश, गौरी, कुल देवी, कुल देवता, नवग्रह, पंचलोकपाल, दिक्पाल तथा वास्तु देवता के आवाहन के बाद पञ्चोपचार अथवा षोड़शोपचार विधि से पूजन के बाद विभिन्न वास्तु जन्य दोषों की शान्ति के निमित्त अनुष्ठान व हवन किया जाता है। रसोई घर में अग्नि की स्थापना, व जल कलश की स्थापना की जाती है। अनुष्ठान के इसी क्रम में गृहपति ( मकान मालिक) वैदिक मन्त्रोच्चार मंत्रोपचार व माङ्गलिक गीतों के साथ कन्या के हाथ में पञ्चामृत पात्र के साथ घर में प्रवेश करता है।
गृह निर्माण की प्रक्रिया में हुए जीव-जन्तुओं के विनाश के प्रायश्चित हेतु अन्न, तृण, चारा आदि का दान का संकल्प लेकर कन्याभोजन व ब्राह्मणभोजन करवाया जाता है। समस्त देवी देवताओं का विसर्जन कर गणेश जी की प्रतिमा को “द्वारगणपति” के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया जाता है।
गृहप्रवेश के शुभ मुहूर्त →
गृहप्रवेश एक माङ्गलिक कार्य है, यह व्यक्ति के जीवन में एक उत्सव की तरह होता है, इसलिए गृहप्रवेश शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। गृहप्रवेश के लिए शुभ वार, शुभ तिथि एवं स्थिर लग्न की आवश्यकता होती है। मुहूर्त शास्त्र के ग्रन्थों के अनुसार निम्नलिखित समय (वेला) गृहप्रवेश हेतु शुभ मानी जाती हैं।
गृहप्रवेश हेतु श्रेष्ठ माह →
ज्येष्ठ, वैशाख, माघ, फाल्गुन, कार्तिक, मार्गशीर्ष।
गृहप्रवेश हेतु उत्तम तिथियाँ →
प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पञ्चमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी।
गृहप्रवेश हेतु शुभ वार →
सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
गृहप्रवेश हेतु उत्तम नक्षत्र →
उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, रेवती, धनिष्ठा, शतभिषा, पुष्य, अश्विनी व हस्त नक्षत्र में गृहप्रवेश शुभ है।
इस प्रकार शुभ माह, नक्षत्र, तिथि व वार देखने के बाद अभिजित् मुहूर्त में अथवा स्थिर लग्न में गृहस्वामी (मकान मालिक) के नामराशि से चन्द्रशुद्धि विचार करके शुभ मुहूर्त का निर्णय किया जाता है।
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