Your cart is currently empty!
Category: Blog
श्री-शिवपञ्चाक्षर-स्तोत्रम्
श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय ॥ १॥ मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय 1 मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवाय ॥ २॥ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द- सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवाय ॥ ३॥ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य- मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवाय ॥ ४ ॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय…
श्रीरामरक्षा-स्तोत्रम्
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् विनियोगः अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीता- रामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्दः सीता शक्तिः श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः । ध्यानम् ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्। वामाङ्कारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥ स्तोत्रम् चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥ १ ॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।…
कालभैरवाष्टकम्
कालभैरवाष्टकम् देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्। नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगम्बरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥ भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् । कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥ शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् । भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३ ॥ भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् । विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ४॥ धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् । स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५…
नाट्यशास्त्र व संस्कृत नाटक
भरतमुनि विरचित नाट्यशास्त्र एक अद्भुत ग्रंथ है जिसमें 6000 सूत्रों में कार्यक्रमों में नाटक के विभिन्न सिद्धांतों रस की उत्पत्ति के सिद्धांत नायक नायिकाओं की परिभाषाएं वह नाटक में प्रयोग होने वाले विभिन्न नियमों सिद्धांतों नाटक ग्रहों की निर्माण विधि के सुख में सूत्रों का विवेचन किया गया है । नाट्य शास्त्र में पंच संधियों…
योगसूत्र, यम व नियम
(योग यम व नियम) योग शास्त्र भारतीय महर्षियों का अनुपम उपहार है। योग शास्त्र में अष्टांग योग के माध्यम से देह से परम तत्व व पिंड से ब्रह्मांड तक को जाना जा सकता है। भारतीय व महर्षियों आचार्यों ने योग परंपरा के दम पर ही अपने शरीर में ही ग्रह नक्षत्रों की गति तक को…
तुलसी,अश्वगंधा,हरिद्रा,हरीतकी,आंवला,अर्जुन आदि।
उत्तम स्वास्थ्य ही समस्त धर्म का मूल साधन है । उत्तम स्वास्थ्य के बिना धर्म का संपादन असंभव है । इसीलिए वेदों का प्रथम उपवेद आयुर्वेद ही माना गया है। वेदों में आयुर्वेद की सामग्री शुद्ध रूप में दी हुई है इसी का विस्तार भारतीय आयुर्वेद के ग्रंथों में किया गया है ।भारतीय आयुर्वेद शास्त्र…
पंचांग का परिचय –
पंचांग का परिचय – भारतीय ज्योतिष के विभिन्न तत्वों में पंचांग का महत्व बहुत महत्व है। पंचांग का तात्पर्य होता है 5 अंगों तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करणों का समूह । तिथि– तिथि का तात्पर्य है सूर्य चंद्र की गति का अंतर। जब सूर्य व चंद्रमा की गति का अंतर 12 डिग्री होता है…
वास्तु का परिचय
वास्तु का परिचय संस्कृत अपार ज्ञान विज्ञान का भंडार है चिरंतन काल से ही संस्कृत वांग्मय में ज्ञान-विज्ञान की अनेक समृद्ध परंपराएं समाहित है। इन्हीं वैज्ञानिक परंपराओं में से एक समृद्ध वैज्ञानिक परंपरा वास्तु विज्ञान की थी जिसका निरंतर प्रवाह वैदिक काल से ही चलता रहा है। वास्तु विज्ञान का मूल अथर्ववेद के उपवेद…
अष्टांग योग व आसन का परिचय
अष्टांग योग व आसन का परिचय– भारतीय संस्कृति में योग का महत्व है। योग दर्शन मानव को उत्तम जीवन की प्रेरणा प्रदान करता है। योग दर्शन के प्रमुख ग्रंथों में पतंजलि विरचित योग सूत्रों का भी महत्व है । इन योग सूत्रों में आसन से लेकर अष्टांग योग का अत्यधिक महत्व है ।अष्टांगों में यम,…