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Author: manojkumarvyas21
छन्द परिचय
वसन्ततिलका (वर्ण=14) लक्षणम्- “उक्ता वसन्ततिलकातभजा: जगौ गः”। तभजा:=तगण, भगण, जगण, जगौ-जगण, गुरु ग:=गुरु, उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी: दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति। दैवं निहित्य कुरु पौरुषामात्मशक्त्या यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोऽत्र दोषः।। मालिनी (वर्ण=15) लक्षणम् -“ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः”। (नगण नगण मगण यगण यगण) प्रथमयति:= 8 द्वितीययति:= 7 उदाहरणम् स हि गगनविहारी, कल्मषध्वंसकारी, दशशतकरधारी, ज्योतिषां मध्यचारी।…
छन्द-परिचय
छन्दपरिचय- “नियतवर्णयुक्तं नियतमात्रायुक्तं वा वाक्यनिकरं वा छन्द इति उच्यते” । “यदक्षरपरिमाणं तच्छन्द:” अर्थात निश्चित वर्णों का समूह है वह निश्चित मात्राओं का समूह है अथवा निश्चित वाक्यों का समूह छंद कहलाता है अथवा जहां पर अक्षरों का परिमाण तय हो वह छंद कहलाता है पद रचनाओं में वाक्यों को पद्य अथवा श्लोकों में बांधने…
ज्ञान परम्परा में आनन्दवर्धन व ध्वनि
आनन्दवर्धन के मत में ध्वनि आनंदवर्धन ध्वनि के प्रवर्तक आचार्य कहे जाते हैं। आनंदवर्धन के अनुसार ध्वनि वह विशेष अर्थ है जो कि काव्य की आत्मा है। यह ध्वनि मुख्यार्थ से व लक्ष्यार्थ से सर्वथा भिन्न होती है। ध्वनि एक ऐसा प्रतिमान अर्थ है जो महाकवियों की वाणी में स्वत: होता है। यह अर्थ…
बौद्धमत में आर्यसत्य
बौद्ध मत में आर्यसत्य हैं– (1) दुःख : संसार में दुःख है, (2) समुदय : दुःख के कारण हैं, (3) निरोध : दुःख के निवारण हैं, (4) मार्ग : निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग हैं। इसके आठ अंग हैं– सम्यक् दृष्टि सम्यक् संकल्प सम्यक् वचन सम्यक् कर्म सम्यक् आजीविका सम्यक् व्यायाम सम्यक् स्मृति सम्यक् समाधि।…
जैनदर्शन में रत्नत्रय
जैनदर्शन में रत्नत्रय-सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञान सम्यक् चरित्र इन तीनों को जैन दर्शन में रत्नत्रय की संज्ञा दी गई है। इन तीनों को मोक्ष का मार्ग कहा गया है। “सम्यक्दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्ग:” सम्यक दर्शन– जैन शास्त्रों में कहे गए तत्वों में श्रद्धा रखना ही सम्यक दर्शन कहलाता है। अथवा जैन आचार्य व जैन मुनियों के…
भारतीय संस्कृति में ज्योतिष का योगदान-
भारतीय संस्कृति में ज्योतिष का योगदान- वेद के 6 अंगों में ज्योतिष एक प्रमुख अंगों के रूप में प्रतिष्ठित है ।ज्योतिष के द्वारा ही काल का विधान किया जाता है। भारतीय संस्कृति का संरक्षक ज्योतिष शास्त्र है । ज्योतिष के द्वारा ही भारतीय संस्कृति में विभिन्न पर्वों , त्योहारों, व्रतों , उत्सवों आदि का काल…
टोडारायसिंह की जल संरक्षण परम्परा
* टोडारायसिंह की जल संरक्षण परम्परा” पंचमहाभूती (जल-अग्नि वायु-पृथ्वी आकाश) के प्रति देवत्व बुद्धि व श्रद्धा भाव भारतवर्ष की परंपरा व संस्कृति का एक हिस्सा है. इसलिए जल आदि तत्वों को देवता मानकर इनका पूजन व संरक्षण समय भारत में क्षेत्रीय परम्परा के अनुसार होता चला आया है। राजस्थान में वर्षा के असमान वितरण व…
प्रकृति की शरण में चलें
प्रकृति की शरण में चलें (प्राकृतिका: भवाम🙂 वैज्ञानिक उन्नति के साथ साथ ही मानव समाज को विभिन्न समस्याएं मुफ्त में मिली है आज हर कोई मानसिक तनाव खराब स्वास्थ्य के दौर से गुजर रहा है ऐसे में प्रकृति की शरण ही हमें बचा सकती है इसलिए हम प्रत्येक सकता है विभिन्न आयामों का…
मदनमोहनमालवीय:( संस्कृति व गुरुकुल शिक्षा के समर्थक व स्थापक)
मदनमोहनमालवीय:( गुरुकुलशिक्षाया: समर्थक: स्थापकश्च) मालिनि वसुशशिनवचन्द्रे(१९१८) वत्सरे पौषमासे तदनु वसुतिथौ(८) हि वासरे चन्द्रसूनोः। हरिभजनरताया:”मोना” देव्या: प्रसूति: तनयमदनमोहन: मालवीयो प्रसिद्ध:।। हिन्दी- हरि के भजन में निमग्न रहनें वाली भक्तिमति मोना देवी के गर्भ से मदन मोहन मालवीय जी का जन्म संंवत्सर 1918 के पौष महीने की अष्टमी तिथि को सोमवार के दिन हुआ। इन्द्रवज्रा…
“भारतीय ज्ञान परम्परा की स्वर्ण धरोहर”
“भारतीय ज्ञान परम्परा की स्वर्ण धरोहर” स्वर्ण -धरोहर याद करें ,नवभारत के निर्माण को। मातृभूमि पर गर्व करें ,करें समर्पित प्राण को।। वेद-पुराणों उपनिषदों के मंत्रों का जो ज्ञान है सूत्र रूप में छुपा हुआ है यहां सारा विज्ञान है महाभारत गीता रामायण के श्लोकों का जो सार है वही वर्तमान पीढ़ी के दुखों…