पंचांग का परिचय –

पंचांग का परिचय –

भारतीय ज्योतिष के विभिन्न तत्वों में पंचांग का महत्व बहुत महत्व है। पंचांग का तात्पर्य होता है 5 अंगों तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करणों का समूह ।

तिथि– तिथि का तात्पर्य है सूर्य चंद्र की गति का अंतर। जब सूर्य व चंद्रमा की गति का अंतर 12 डिग्री होता है तब एक स्थिति होती है इसी प्रकार यही अंतर बढ़ते हुए पूर्णिमा में 180 डिग्री जा पहुंचता है और अमावस्या में उन दोनों का अंतर 0 डिग्री होता है।

वार– इसी तरह वार जो कि ग्रहों की कक्षा कर्म के आधार पर तय किए गए हैं ये 7 होते हैं । विश्व के किसी भी खगोलीय सिद्धांत में वारक्रम को समझाने का सूत्र उपलब्ध नहीं है ।यह केवल भारतीय शास्त्रों में दिए गए कक्षा कर्म के आधार पर ही तय किया गया है। इस तरह वारों का विभाजन 7 किया गया है जो कि रविवारादि क्रम से है।

नक्षत्र– नक्षत्र आकाश में विद्यमान क्रांति मंडल के 27 भाग नक्षत्र कहलाते हैं प्रत्येक नक्षत्र का मान 12 डिग्री होता है एक राशि में 2:15 नक्षत्र होते हैं यह 27 नक्षत्र अश्विनी भरणी इत्यादि है ।

योग– योग भी ज्योतिष शास्त्र में 27 कहे गए हैं जो कि विष्कुंभ प्रीति इत्यादि है। लोक की शुभ व अशुभ की कल्पना के उद्देश्य से योगों की अवधारणा की कल्पना की गई है।

करण– तिथि का आधा भाग करण कहलाता है अर्थात एक राशि में दो कारण होते हैं करणों  का विभाजन चर व अचर दो प्रकार से किया गया है। चर करण चार होते हैं जबकि अचर करण  सात होते है।


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