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Surya v Sankranti / भारतीय-संस्कृति सूर्य व संक्रांति
सूर्य व संक्रांति
यद्यपि संक्रान्ति का सम्बन्ध आकाश में घुमने वाले समस्त ग्रहों के साथ है, तथापि मुख्य रूप से सूर्य की संक्रान्ति ही संसार में पुण्यजनक होने कारण प्रसिद्ध है। सनातन हिन्दू धर्म में मकर संक्रान्ति को एक प्रमुख पर्व (त्यौहार) के रूप में स्वीकार किया गया है। इतना ही नहीं बल्कि धार्मिक ग्रन्थों, स्मृति ग्रन्थों, पुराणों व संस्कृत वाङ्गय के कई ग्रन्थों में सूर्य का उत्तरायण आरम्भ वर्णित है। आखिर क्यों सूर्य का उत्तर में लौटना प्रसिद्ध व पुण्यजनक है? क्या अन्य ग्रहों की सक्रान्ति नहीं होती? इत्यादि प्रश्नों का उत्तर जानना हिन्दू धर्म व सभ्य समाज के लिए आवश्यक है। यह आवश्यकता तब और भी बढ़ जाती है जब किसी विषय को पर्व के रूप में स्वीकार कर लिया हो। इसलिए संक्रान्ति और सूर्य संबंधित विषय पर चर्चा की जा रही है।
संक्रान्ति शब्द का अर्थ-
“सम्” उपसर्ग पूर्वक क्रमु क्रान्त धातु से उत्पन्न संक्रान्ति शब्द का अर्थ प्रवेश करना होता है, परन्तु यह शब्द केवल ग्रहों के विषय में ही रूढ व प्रसिद्ध हो गया है। अर्थात् किसी ग्रह का एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रान्ति कहलाता है। जैसे सूर्य का मेष में प्रवेश करना मेष संक्रान्ति, मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रान्ति । ऐसे ही अन्य ग्रह (चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) आदि भी जब राशि में प्रवेश करते है तब
आदि भी जब राशि में प्रवेश करते है तब उनकी संक्रान्ति कहलाती है। परन्तु सभी ग्रहों में केवल सूर्य की संक्रान्ति ही ऋतु परिवर्तन का कारण है. सूर्य कालात्म कालकृत् व विभु है। सूर्य स्वयं प्रकाशित है, जबकि अन्यान्य समस्त ग्रह, नक्षत्र, तारापिण्ड व सकल चराचर जगत सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित है। सूर्य ही दिन व रात्रि का कारण है। इसलिए संक्रान्ति का वास्तकिव सम्बन्ध सूर्य से है। सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ में कहा गया है – संक्रान्त्या सौर उप्यते ।
मकर संक्रान्ति
सूर्य विषुवत रेखा अर्थात् लंका देश से उदय होकर चलना आरम्भ होता है। सूर्य का पहली बार उदय रविवार के दिन लंका में कहा गया है। यथा सिद्धान्त शिरोमणि में आचार्य भास्कर कहते हैं –
लंकानगर्यामुदयाच्च भानाः
तस्यैव वारे प्रथमं बभूव |
सूर्य लंका से मेष से लेकर कन्या तक उत्तरी गोलार्द्ध में व तुला से मीन तक दक्षिणगोलार्द्ध में रहता है। सूर्य प्रतिदिन
दक्षिणगोलार्द्ध में रहता है। सूर्य प्रतिदिन की गति चलता हुआ प्रत्येक माह की 14 या 15 तारीख को राशि परिवर्तन करता है। इसी नियम से जब 14 जून को कर्क में प्रवेश करता है तब दक्षिणायनारम्भ व जब 14 जनवरी को मकर में प्रवेश करता उस दिन उत्तरायण का आरम्भ होता है।
यथा सूर्यसिद्धान्ते –
भानोर्मकरसंक्रान्तेः षण्मासा उत्तरायणम् ।
कर्कादिस्तु तथैव स्यात् षण्मासा दक्षिणायनम् ।।
यद्यपि दक्षिण गोल में रहने वालों के लिए दक्षिणायन प्रथित है, परन्तु दुनिया की अधिकाश आबादी के उत्तरगोल में रहने के कारण सूर्य का उत्तरायण में आना ज्यादा प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति व सनातन हिन्दू धर्म की परम्परा में सूर्य को देवता माना गया है, इसलिए जब सूर्य अपने घर से परम दूरी पर जाकर वापस उत्तराभिमुख होता है उसी दिन को मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है।
पुण्यकाल-
मकर संक्रान्ति के दिन स्नान, दान, जप, श्राद्ध आदि कर्म पुण्य जनक होते हैं। लेकिन संक्रान्ति के दिन भी पुण्यकाल भिन्न होता है, जो कि पंचांगों में साधित कर लिख दिया जाता है। इस पुण्य काल को जानने मात्र से ही पुण्य प्राप्ति कही गयी है। संक्रान्ति में स्नानादि से पुण्य प्राप्ति के विषय में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। यहाँ प्रमाण रूप में स्मृतिग्रन्थों को ही शब्द प्रमाण से स्वीकार करना चाहिए।
डॉ विनोद कुमार शर्मा
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