भारतीय संस्कृति व परम्पराओं में तुलसी

                                              

भारतीय संस्कृति में पर्यावरणीय संचेतना के अनूठे उदाहरण व साक्ष्य है। यहां तुलसी आदि पौधों को भी पूज्य कहा गया है तुलसी का आयुर्वेदिक महत्व होने के कारण यह नियमित रूप से भारतीय पूजा पद्धति वह आचमन चरणामृत आदि में शामिल की गई है। स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम व लाभदायक होने के कारण इसके नियमित उपयोग की परम्परा रही है। अन्य पादपों की अपेक्षा तुलसी का विशेष महत्व होने के कारण इसकी किसी भी पादप से तुलना नहीं की जा सकती इसलिए ही इसे तुलसी कहा गया है शब्दकोश के अनुसार तुलसी का अर्थ है-

                                                    “अतुलनीया तुलनायाम् अन्यै:”

अर्थात  अन्य पौधों व पादपो के साथ जिसकी तुलना संभव नहीं है वह तुलसी है।

 तुलसी के प्रमुख भेद- तुलसी दो प्रकार की कही गई है।                

                                                   श्वेता व कृष्णा   

                                            “ श्वेता कृष्णा द्विधा तुलसी

लोक व्यवहार में इन्हीं दोनों प्रकारों को राम तुलसी व श्यामा तुलसी कहा गया है शास्त्रीय प्रमाण के अनुसार दोनों तुलसी गुना में समान कही गई है-

                                                      “गुणैस्तुल्या प्रकीर्तिता

भारतीय शास्त्रों में तुलसी को तीनों दोषों को हरण करने वाली कहा गया है यह तीन दोष है पाप, पातक व रोग।

शास्त्रों में कहा गया है कि दूर्वा पापों को दूर करती है, आंवला पातक को हरता है व हारीतकी अर्थात हरड रोगों को दूर करती है। लेकिन तुलसी पाप, पातक व रोग तीनों दोषों को दूर करने वाली होती है इसलिए तुलसी को विशिष्ट विशिष्ट में पूज्य पादप के रूप में भारतीय संस्कृति में स्थान दिया गया है।

दूर्वा हरति पापानि

आमलकं पातकं हरेत्।

हारीतकी हरेद्रोगं

तुलसी हरति त्रयम्।।


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