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भारतीय संस्कृति व गीता-
भारत में गीता अध्ययन की परंपरा-
भारत के गुरुकुलों की परंपरा के समय में श्रीमद् भागवत गीता के नियमित अध्ययन व पाठ की परंपरा रही है भारत के युवा श्रीमद्भगवत गीता के नियमित पाठ व नियमित व्यायाम को अपना दिनचर्या में शामिल मानते थे।श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित अध्ययन कुछ ही दिनों में मन मस्तिष्क में इसके गम्भीर अर्थ को प्रकट करने लगता है व गीता के सिद्धांत व्यवहार में उतरने लगते हैं। इसलिये इसके नियमित पाठ को अपनाया जाना चाहिए। स्वतंत्रता के संग्राम में क्रान्तिकारियों की ऊर्जा का मुख्य स्रोत श्रीमद्भगवद्गीता ही थी। गीता ज्ञान के दम पर अनेक क्रांतिकारी अपने प्राणों के मोह व शोक को त्यागते हुए देश के लिए बलिदान हो गये। श्रीमद्भगवतगीता का नियमित पाठ भारत के युवाओं की परम्परा रही है।
स्वतंत्रता संग्राम व श्रीमद भगवत गीता–
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानी योग क्रांतिकारियों का मूल मंत्र व संघर्ष की क्षमता करने का समर्थ है प्रदान करने वाला ग्रंथ है श्रीमद् भागवत गीता अनेक क्रांतिकारी श्रीमद् भागवत गीता को अपने साथ जेल में भी रखा करते थे वह अनेक क्रांतिकारी तो फांसी के फंदे पर जुड़ने से पूर्व श्रीमद् भागवत गीता का अध्ययन करके सुखद पूर्वक जीवन लीला को समाप्त कर गए।श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों की संघटना इस प्रकार की है कि सामान्य बालक को भी इसके नियमित अध्ययन से अपार क्षमताओं से भरा जा सकता है। निकटवर्ती भूतकाल में ही बालगंगाधर तिलक, अरविंद, महात्मा गांधी, विनोबा भावे जैसे व्यक्तित्वों ने श्रीमद्भगवद्गीता के अध्ययन से स्वयं के जीवन को रूपान्तरित करते हुए सम्पूर्ण विश्व-परिवार के कल्याण हेतु कार्य कियें हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्यकारों ने, व्याख्याकारो ने, अनेक सम्प्रदायाध्यक्षों ने व विद्वानों ने अपनी अपनी व्याख्याओं की भूमिका में यह स्वीकार किया है कि श्रीमद्भगवद्गीता सम्पूर्ण विश्व की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ है। श्रीमद्भगवद्गीता का नियमित अध्ययन कुछ ही दिनों में मन मस्तिष्क में इसके गम्भीर अर्थ को प्रकट करने लगता है व गीता के सिद्धांत व्यवहार में उतरने लगते हैं। इसलिये इसके नियमित पाठ को अपनाया जाना चाहिए।
श्रीमद्भगवत गीता व छात्र जीवन
श्रीकृष्ण के द्वारा बताया गया मार्ग वर्तमान समय में छात्रों के लिये भी उतना ही उपयोगी व कल्याणकारी है जितना कि अर्जुन के लिये था। आज आधुनिकता की चकाचौंध में अनेक छात्र जीवन मूल्यों, संस्कृति व शिक्षा के वास्तविक उद्देश्यो को बहुत पीछे छोड़कर तनाव, द्वन्द्व व मोह की अवस्था में पहुँच चुके हैं, इस स्थिति श्रीमद्भगवद्गीता उनके जीवन को पुनः व्यवस्थित करते हुये आनन्दमय बना सकती है। इस शोध पत्र में श्रीमद्भगवद्गीता में के विभिन्न अध्यायों में यत्र-तत्र कहे गये सिद्धान्तों व नियमों का उल्लेख किया गया है, जिनके नियमित परिपालन से छात्रजीवन को उन्नत बनाया जा सकता है।
श्रीमद्भगवत गीता व विश्व कल्याण
विश्व का कल्याण निरन्तर कर्म करते रहने में ही है। किस प्रकार के कर्म किये जायें, किस प्रकार के कर्म नहीं किये जायें इसका गीता में सटीक विवेचन किया गया है। गीता मे कर्म फल का त्याग करते हुए कर्म करते रहने वाले को योगी कहा गया है। योग मार्ग पर चलना ही श्रीमद्भगवद्गीता का परम उद्देश्य है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में पुनः पुनः अर्जुन को कहते हैं
“योगयुक्तो भवार्जुन”७ ।
श्रीमद्भगवद्गीता में योग युक्त होकर कर्म करते रहने का सतत उपदेश है- “योगस्थ कुरु कर्माणि”।८ श्रीमद्भगवद्गीता में प्रत्येक व्यक्ति को उसके तात्कालिक धर्म, वर्ण, अवस्था, देशकाल, व परिस्थिति के अनुसार कार्य करते रहने का उपदेश है, जैसे विद्यार्थियों के लिये अध्ययन ही कर्म है अत: उन्हें अध्ययन का त्याग नहीं करना चाहिये, योद्धा के लिए युद्ध व शौर्य प्रदर्शन ही कर्म है उन्हें इसका त्याग नहीं करना चाहिये, सन्यासी के लिए अग्नि का स्पर्श नहीं करना ही कर्म है उसे यह नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार करणीय व अकरणीय कार्यों के विषय में शास्त्र को प्रमाण मानकर कार्य करना चाहिये।
श्रीमद्भगवद्गीता का प्रभाव–
महात्मा गांधि ने कहा है कि जब मैं अत्यन्त घोर निराशा में होता हूं और आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती तब श्रीमद्भगवद्गीता की तरफ देखता हूं और जीवन आनंद से भर जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्यकारों ने, व्याख्याकारो ने, अनेक सम्प्रदायाध्यक्षों ने व विद्वानों ने अपनी अपनी व्याख्याओं की भूमिका में यह स्वीकार किया है कि श्रीमद्भगवद्गीता सम्पूर्ण विश्व की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ है।
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