टोडारायसिंह की जल संरक्षण परम्परा

           ” टोडारायसिंह की जल संरक्षण परम्परा”

                  डॉ विनोद कुमार शर्मा

 पंचमहाभूतों(  जल- अग्नि -वायु -पृथ्वी -आकाश) के प्रति देवत्व बुद्धि व श्रद्धा भाव भारतवर्ष की परंपरा व संस्कृति का एक हिस्सा है , इसलिए जल आदि तत्वों को देवता मानकर इनका पूजन व संरक्षण समग्र भारत में क्षेत्रीय परम्परा के अनुसार होता चला आया है ।राजस्थान में वर्षा के असमान वितरण व विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों के चलते जल का संरक्षण अनिवार्य रूप से कई प्रकार के परम्परागत जल संरक्षण के प्रकल्पों यथा कुआ ,बावड़ी ,तालाब, नाडा ,जोहड़ व झालरा,होद,टांका इत्यादि के द्वारा किया जाता है ।

इसी क्रम में टोडारायसिंह व बावडियों का संबंध भी बहुत प्रसिद्ध है पेयजल व स्थानीय जल के उपयोग की दृष्टि से टोडारायसिंह के कोने कोने में गली-गली वह प्रत्येक चौराहे चौपाल पर बावडियां बनी हुई है। प्राचीन जलग्रहणवास्तु प्रणाली के अनुसार बनी हुई ये बावडियां जल संरक्षण के प्रति क्षेत्रवासियों की गंभीरता को, जल के प्रति श्रद्धा  को ,व क्षेत्र की प्राचीनता को सिद्ध करती है ।देखने में ही मनोहर व रमणीय देखनी वाली ये बावडियाI टोडारायसिंह की ऐतिहासिकता के साथ ही शहर के पर्यटन महात्म्य को भी प्रकट करती है ।यहां “हाड़ी रानी” की बावड़ी पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है ,व फिल्मांकन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है ।अन्य प्रमुख जलाशयों में सरड़ा बावड़ी, बुद्धसागर ,भेरू झाम इत्यादि भी मनोरम व  दर्शनीय होने के साथ-साथ जल संरक्षण के अद्भुत  स्रोत है ।

एक अनुमानित गणना के अनुसार टोडारायसिंह में 300 से अधिक छोटी बड़ी बावड़ियां हैं , जिनमें कुछ सुरक्षित व कुछ जर्जर अवस्था में है ।नगर निकाय , शासन प्रशासन, स्थानीयविधायक के प्रयास व जनसमर्थन से टोडारायसिंह की बावड़ियों के सफाई पुनरुद्धार जैसे कार्य किए जाते रहे हैं।

इसके अतिरिक्त भी जनाकांक्षा के अनुरूप पुरातत्व विभाग की सहायता से टोडारायसिंह के जल संरक्षण स्त्रोतों को संरक्षित व सुसज्जित करते हुए शहर को ऐतिहासिक व  पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा सकता है।

हाडी रानी कुंड/बावडी-

टोंक जिले में अरावली पर्वत की दो श्रेणियां विद्यमान है जिनमें एक श्रेणी टोडरायसिंह से राजमहल तक विस्तृत है  इसी पर्वत श्रेणी में  टोडरायसिंह शहर बसा हुआ है ।टोडारायसिंह में इस श्रेणी के एक तरफ हाडी रानी कुंड स्थित है तो दूसरी तरफ बुध सागर  स्थित है ।हाड़ी रानी कुंड चुंडावत राजा रतन सिंह के द्वारा अपनी हाडी रानी( हाडोती की रानी) की स्मृति में बनाई गई थी , जो कि बाद में उसी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। यह बावड़ी अपने अद्भुत जलवास्तु कला  व  सीढियों के विचित्र विन्यास के कारण प्रसिद्ध है। इसकी  सीढ़ियों से एक बार नीचे उतरने पर पुनः उस सीढी से वापस नहीं आ सकते। फिल्मांकन की दृष्टि से भी इसका महत्व बढ़ गया है, क्योंकि प्रसिद्ध फिल्म निर्माता अमोल पालेकर ने यहां पर  राजस्थान के प्रसिद्ध साहित्यकार “विजयदान देथा” की कृति पर “पहेली “फिल्म की शूटिंग की थी। हाडी रानी कुंड टोंक जिले के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक है। बीसलपुर के मार्ग पर जाने वाले पर्यटकों के लिए यह आकर्षण का केंद्र है।  वर्तमान में यह कुंड राजस्थान सरकार के पुरातात्विक विभाग द्वारा संरक्षित है।

 बुद्धसागर-

 टोडारायसिंह में बीसलपुर की ओर जाने वाले मार्ग में अरावली तलहटी में  ऐतिहासिक महल के पृष्ठ भाग में यह सरोवर स्थित है। इसमें संपूर्ण वर्ष जल रहता है स्थानीय जन  मान्यताओं के अनुसार इस सरोवर में विभिन्न वृक्षों का व औषधियों का जल एकत्रित होता है जो कि चर्म रोग के उपचार हेतु विशेष लाभदायक है ,व इसमें स्नान करने से चर्म रोगों की निवृत्ति हो जाती है ।यह अद्भुत दर्शनीय स्थल है यहां विभिन्न साधु व तपस्वीयों  की तपोस्थली विद्यमान है। सरोवर के मध्य में व सरोवर के किनारे शिव मंदिर स्थित है ।इस स्थान पर पहुंच कर मन को शांति का अनुभव होता है।

 बीसलदेव व बीसलपुर सरोवर-

 टोडारायसिंह के निकट ही चौहान वंश के राजा बीसलदेव ने 11वीं शताब्दी में  शिव मंदिर बनवाया था, व एक सरोवर की स्थापना की थी। यही सरोवर वर्तमान में बीसलपुर बांध के नाम से सुप्रसिद्ध है, जो कि अथाह जलराशि का पर्याय है। यह  बांध राजस्थान जैसे रेगिस्तान क्षेत्र में समुद्र की तरह विस्तृत है। यहां आने पर जहां तक दृष्टि का विस्तार है वहां तक बीसलपुर का अथाह जलराशि दिखाई देता है। बिसलपुर पेयजल परियोजना वर्तमान में राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। जिससे कई गावों, शहरों व जयपुर जैसे महानगर को पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है।  बीसलपुर बांध राजस्थान के पर्यटन स्थलों में एक है वह यहां पर वर्ष भर में हजारों पर्यटक व  दर्शनार्थी आते हैं।

*बीसलपुर बांध टोडरायसिंह क्षेत्र की जल संरक्षण की परम्परा को पुष्ट करता ह।

 जलदेवी (बावडी माता)व जल संरक्षण परंपरा-

 टोडारायसिंह के समीप ही क्षेत्र की आराध्य देवी व शक्ति स्थल जल देवी स्थित है ।जलदेवी स्वयं जल की अधिष्ठात्री देवी है ।यह शक्तिस्थल जिस गांव में स्थित है उस गांव का नाम ही बावडी है ।इसलिए क्षेत्रवासी जलदेवी को “बावड़ी माता” के नाम से मानते हैं ।जिस प्रकार बिना जल के बावड़ी का कोई अस्तित्व नहीं है उसी प्रकार बिना जल देवी के बावड़ी ग्राम का अस्तित्व नहीं है। न केवल बावड़ी ग्राम अपितु समूचे टोडरायसिंह क्षेत्र की देवीय शक्ति का केंद्र जलदेवी है, जल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण क्षेत्रवासी जलदेवी से अलग नहीं हो सकते हैं, अपितु शक्ति स्थल की तरफ ही खींचे चले आते हैं ।जिस प्रकार भौतिक शरीर का जल के बिना अस्तित्व नहीं है उसी प्रकार आध्यात्मिक शरीर का बिना जलदेवी के अस्तित्व नहीं है। नवरात्रि के दिनों में क्षेत्रवासी जलदेवी  के दर्शन कर अपने आत्मिक शरीर को उर्जान्वित करते हैं ।जलदेवी के प्रभाव से आध्यात्मिक शरीर ही नहीं अपितु भौतिक शरीर भी प्रभावित होता है ।शरीर में स्थित जलपर जलदेवी का प्रभाव होता है ।

 टोडरायसिंह क्षेत्र की वन्य जीव संरक्षण परम्परा-

जलदेवी के प्रति लोगों की अत्यधिक श्रद्धा के चलते ही क्षेत्र में जल संरक्षण व प्रकृति प्रेम की परंपरा का उद्भव हुआ ।इसी आधार पर क्षेत्र के चारों तरफ गांवों के नाम बावड़ी ,मोर , कूकड, बघेरा, वन का खेडा अादि रखे गये।   गांवों के नाम वन्यजीवों के आधार पर रखने का अभिप्राय वन्य जीवो के प्रति श्रद्धा ,अहिंसा व संरक्षण भाव ही हैं ।


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