विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ का महत्व

वेदव्यास द्वारा लिखित महाभारत के अंदर विष्णु सहस्त्र नाम का मूल पाठ प्राप्त होता है विष्णु सहस्त्र नाम में भगवान विष्णु के 1000 नाम का संग्रह है विष्णु सहस्त्रनाम में अनुपस्थुप चांद है वह इसमें जो चांद दिए हैं वह इस प्रकार से निबंध किए गए हैं कि इनका पाठ सरलता व आनंदपूर्वक हो जाता है इनके शब्दों में वह ध्वनि व ऊर्जा समाहित है जिसके कुछ ही दिनों के नियमित पाठ से यह बुद्धि में उतरने लगता है वह मन मस्तिष्क आनंद से भर जाता है

गांधार देश में हो रहे स्वयंवर में देश के अनेक राजाओं ने भाग लिया जिसमें भीष्म पितामह ने भी भाग लिया। तब भीष्म नें स्वयंवर में गांधारी को देखा उन्होंने धृतराष्ट्र के लिए गांधारी का हाथ मांगा, उस सभा में यह जानते हुए भी कि धृतराष्ट्र जन्मांध है कोई भी उनका विरोध नहीं कर सके। इस प्रकार के भीष्म पितामह के पराक्रम को देखते हुए युधिष्ठिर ने महाभारत के युद्ध में जब भीष्म सर से यहां पर लेटे हुए थे तो उनसे पूछा कि आपके पराक्रम का वह शौर्य  का   कारण व रहस्य क्या है। भीष्म पितामह है नहीं विष्णु सहस्त्रनाम के नियमित पाठ में त्रिकाल संध्या को ही अपने शौर्य पर आक्रमण का कारण बताया वह कहा कि-

               त्रिकालसन्ध्या च सहस्त्रनाम

अर्थात्  त्रैकालिक संध्या व विष्णु सहस्त्रनाम के नियमित पाठ है मेरे शौर्य का रहस्य है।


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