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राष्ट्र भाषा व संस्कृत
राष्ट्र भाषा व संस्कृत
भारत के संविधान निर्माण के समय में यह समस्या सामने आई थी कि इस देश की राष्ट्रीय भाषा क्या होगी जिसमें संपूर्ण व्यवहार व देश में राज कार्य में व्यवहार किया जा सके। ऐसी स्थिति में संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर का सुझाव संस्कृत के प्रति था कि संस्कृत से संपूर्ण देश में एक समान रूप में व्यवहार किया जा सकता है परंतु ऐसा नहीं हो सका। हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला परंतु आज भी हिंदी के प्रति दक्षिण भारतीयों की दृष्टि अनुकूल नहीं है, वअंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने में उत्तर भारत की अनुकूलता नहीं है। एक विदेशी भाषा को इस देश की राष्ट्रभाषा बनाया भी नहीं जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाएं तब संस्कृत ही एक विकल्प के रूप में सामने आती है, जिसका संपूर्ण भारत में कई भी विरोध नहीं है । संस्कृत से ही देश की समस्त भाषायें निकली हुई है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी होने के कारण देश के विभिन्न प्रांतो में बोली जाने वाली भाषाओं व क्षत्रिय बोलियां में भी संस्कृत के ही शब्द विद्यमान है। इसलिए संस्कृत के प्रति सभी लोगों की श्रद्धा पर विश्वास है संस्कृत का विरोध कहीं भी नहीं होने के कारण इसको राष्ट्रभाषा बनाया जा सकता है। भारतीय धर्म ग्रंन्थ, आर्ष ग्रंथ, , इतिहास ग्रंथ, रामायण महाभारत इत्यादि समस्त संस्कृत भाषा में ही विरचित होने के कारण यदि संस्कृत को राष्ट्रीय भाषा बनाया जाता है तो यह देश की एकता व अखंडता के लिए भी सर्वोत्तम है।
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