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मंत्र जप का परिचय व भेद
मंत्र जप का परिचय व भेद
जिस प्रकार शरीर की बाह्य शुद्धि के लिए स्नान किया जाना आवश्यक है, उसी प्रकार आत्मा की शुद्धि के लिए सन्ध्या वंदन आदि नित्य कर्म का किया जाना आवश्यक है। सन्ध्या वन्दन के उपरांत अतिरिक्त सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल की वृद्धि, भय, शोक और मन के संताप के नाश के लिए अलौकिक ऊर्जा की प्राप्ति के लिए संस्कृत वैदिक वाङ्मय व भक्तिकाव्यों में विविध स्तोत्रों, स्तुति-पाठों व मन्त्रों की जप विधि का प्रतिपादन किया गया है। मन्त्रों को बीजाक्षरों व छन्दों में बांधा गया हैl इन मन्त्रों के सतत् जप से नहीं होने वाले कार्य को, होने में बदला जा सकता हैl जप से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा से दूर अभीप्सित् मनोकामना की सिद्धि व अनिष्ट का नाश होता है।
वेदों के भाष्यकार सायण का मत है कि –
“इष्टप्राप्ति- अनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं वेदयति स वेद:”
अर्थात् इष्टप्राप्ति व अनिष्ट (अमङ्गल) का नाश ही वेदमन्त्रों का उद्देश्य है।
मन्त्र की परिभाषा व प्रकार
मन्त्र शब्द का अर्थ है “मननात् मन्त्रः” अर्थात् जिसका मनन किया जाता है वह मन्त्र कहलाता है। मनन का अर्थ है मनस् इंन्द्रिय के द्वारा मन्त्र का बार-बार उच्चारण या ध्यान करना। इस प्रकार मन्त्र की यह परिभाषा सिद्ध हुई कि जिन शब्दों के समूह का बार-बार मनन किया जाए वही मन्त्र है । मन्त्र कई प्रकार के होते हैं । जैसे – वैदिक, तान्त्रिक इत्यादि।
मन्त्र जप विधि
मन्त्रों से होने वाले लाभ के लिए हर मनुष्य पात्र है, परन्तु उसे जपने के लिए हर कोई पात्र नहीं है। मन्त्र जप की पात्रता धर्मशास्त्र के अनुसार तय की गई है। मन्त्र के जप में परमाणु ऊर्जा जैसी ऊर्जा प्राप्त होती है।
मन्त्रों के विधिवत् जप से परमाणु ऊर्जा जैसी सकारात्मक ऊर्जा का ऊर्जा विस्कोट सम्भव है तथा अनुचित व त्रुटिपूर्वक जप से नकारात्मक ऊर्जा का विकार भी सम्भव है। इसलिए मन्त्रजप के लिए धर्मशास्त्र के नियमों का पालन करना आवश्यक है। धर्मशास्त्रानुसार वैदिक मन्त्रों के जप व अनुष्ठान हेतु त्रिकाल सन्ध्या वन्दन करने वाला व वेद की शाखाओं का गुरुमुख से अध्ययन करने वाला ब्राह्मण ही अधिकारी है। परन्तु फल के अधिकारी समस्त वर्ग के व्यक्ति व स्त्रियाँ भी है।
मन्त्र जप के प्रकार/भेद
स्मृतिग्रन्थों व धर्मशास्त्रों में मन्त्रों के उच्चारण की दृष्टि से जप के तीन प्रकार होते हैं –
1.] जपयज्ञ
2.] उपांशु
3.] मानस
जपयज्ञ
किसी मन्त्र का उच्चारण इस प्रकार करें जिसे अन्य व्यक्ति भी सुन सके वह सामान्य जप कहलाता है।
उपांशु
उपांशु जप में समीपस्थ व्यक्ति भी मन्त्र को नहीं सुन पाता है।
मानस
मानस जप में मन्त्र उच्चारण मन में ही किया जाता हैं।
जप के फल की विशिष्टता
पूर्वोक्त तीनों प्रकार के जप के फल की गुणवत्ता में अन्तर होता है। सामान्य जप से उपांशु जप सौ गुना अधिक फल देने वाला होता हैं, मानस जप उपांशु जप से भी एक हजार गुना अधिक फल देने वाला होता है। इस प्रकार मानस जप को सर्वश्रेष्ठ जप माना गया है। मनु कहते ह कि –
” विधियज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणैः ।
उपांशु स्याच्छतगुणः साहस्त्रो मानसः स्मृतः ॥ “
स्थान के अनुसार जप के फल – अपने निवास स्थान में जप करना फलदायक कहा गया है, गोष्ट ( गाय के बंधन स्थान) में जप करने से सौ गुना फल, पुण्यतीर्थ में जप का हजार गुणा फल, नदी के किनारे जप करने से लाख गुणा फल, देवालय में कोटि गुणा फल व शिवजी के सम्मुख जप करने से अनन्त फल की प्राप्ति कही गई है। जप के फल प्राप्ति के विषय में शास्त्रीय प्रमाण प्राप्त होता है,
यथा-
गृहे चैकगुणः प्रोक्तो गोष्ठे शतगुण स्मृतः।
पुण्यारण्ये तथा तीर्थे सहस्त्रगुणमुच्यते ॥
अयुतं पर्वते पुण्यं नद्यां लक्ष गुणो जपः ।
कोटिर्देवालये प्राप्ते अनन्तं शिवसन्निधौ ॥
उपर्युक्त प्रकार से बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह मन्त्र जप की विधिवत् व शास्त्रीय परम्परा के अनुसार सतत् जप करते हुए सकारात्मक ऊर्जा के उत्पादन के द्वारा समस्याओं व अनिष्ट को दूर करते हुए जीवन को कुशल व मंगलमय बनायें । निश्चित ही मन्त्र जप जीवन परिवर्तन हेतु एक महत्वपूर्ण व अलौकिक प्रकल्प व शास्त्रीय उपाय है।
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