भारतीय ज्ञान परंपराओं में भारवि

भारतीय ज्ञान परंपराओं में भारवि

 किरातार्जुनीयम् की संक्षिप्त कथा

इसमें कौरवों पर विजय-प्राप्ति के लिए व्यास मुनि के उपदेश अनुसार अर्जुन का हिमालय पर्वत पर जाकर तपस्या करने, किरात-वेषधारी शिव से युद्ध और प्रसन्न शिव से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति का वर्णन है। सर्गानुसार संक्षिप्त कथा इस प्रकार है :

सर्ग १-दूत वनेचर का आकर युधिष्ठिर से मिलना, दुर्योधन के शासन-प्रबन्ध का वर्णन तथा द्रोपदी द्वारा युधिष्ठिर को उत्साह पूर्वक वचन कहना, युधिष्ठिर-द्रौपदी का कौरवों के प्रति कर्तव्य-विषयक संवाद;

 सर्ग २-युधिष्ठिरभीम का संवाद, व्यास का आगमन।

 सर्ग ३–युधिष्ठिर-व्यास-संवाद, व्यास का अर्जुन को पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए हिमालय पर जाने का उपदेश, अर्जुन का प्रस्थान।

 सर्ग ४-शरद्-वर्णन।

 सर्ग ५–हिमालय-वर्णन।

 सर्ग ६-हिमालय पर अर्जुन की तपस्या, तपोविघ्नार्थ इन्द्र का अप्सराओं को भेजना।

सर्ग ७–गन्धर्वो और अप्सराओं के विलासों का वर्णन।

 सर्ग ८-गन्धर्वों और अप्सराओं की उद्यान-क्रीड़ा और जलक्रीड़ा।

 सर्ग 9-सायंकाल और चन्द्रोदय का वर्णन,सुरत-वर्णन तथा प्रभात-वर्णन।

सर्ग १०-वर्षादि-वर्णन, अप्सराओं का चेष्टा-वर्णन तथा उनका प्रयत्न-वैफल्य ।

 सर्ग ११-मुनि रूप में इन्द्र का प्रागमन, इन्द्र-अर्जुन-संवाद, इन्द्र का पाशुपत अस्त्र-प्राप्त्यर्थ अर्जुन को शिवाराधना का उपदेश ।

सर्ग १२-अर्जुन की तपस्या, शूकर रूप में मूक दानव का अर्जुन-वधार्थ आगमन, किरात-वेषधारी शिव का आगमन।

सर्ग १३-शूकररूपधारी मूक दानव पर शिव और अर्जुन के बाणों का प्रहार,  शूकर की मृत्यु, बाण के विषय में शिव के अनुचर और अर्जुन का विवाद।

सर्ग १४–सेना-सहित शिव का आगमन और

सेना के साथ अर्जुन का युद्ध।

सर्ग १५-चित्र-युद्ध-वर्णन।

सर्ग १६-शिव और अर्जुन का अस्त्रयुद्ध।

 सर्ग १७–सेना के साथ अर्जुन का युद्ध, शिव और अर्जुन का युद्ध।

 सर्ग १८-शिव और अर्जुन का बाहुयुद्ध, शिव का वास्तविक रूप में प्रकट होना, इन्द्रादि का आगमन, अर्जुन को पाशुपत प्रस्त्र की प्राप्ति, इन्द्र आदि का अर्जुन को विविध अस्त्र देना, सफल-मनोरथ अर्जुन का युधिष्ठिर के समीप पहुँचना।

भारतीय ज्ञान परंपराओं में माघ

शिशुपालवध की संक्षिप्त कथा

इसमें देवर्षि नारद द्वारा शिशुपाल के पूर्व जन्मों का विवरण देते हुए उसके अत्याचारों का उल्लेख, श्रीकृष्ण से उसके संहार की प्रार्थना, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण का इन्द्रप्रस्थ पहुँचना, शिशुपाल का अभद्र व्यवहार और क्रुद्ध श्रीकृष्ण द्वारा उसका वध वर्णित है। सर्गानुसार संक्षिप्त कथा इस प्रकार है –

सर्ग १-देवर्षि नारद का आगमन, श्रीकृष्ण द्वारा उनका सत्कार, नारद द्वारा शिशुपाल के पूर्व जन्मों और उसके अत्याचारों का वर्णन तथा श्रीकृष्ण को इन्द्र का सन्देश सुनाना और उन्हें शिशुपाल के वध हेतु उद्यत करना।

सर्ग २-श्रीकृष्ण, बलराम और उद्धव की गुप्त मंत्रणा, बलराम की शिशुपाल के वधार्थ तुरन्त अभियान की सलाह, नीतिज्ञ उद्धव के द्वारा इस विषय में अधिक शीघ्रता न करके युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भाग लेने का परामर्श देना ।

सर्ग ३-द्वारका से श्रीकृष्ण का इन्द्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करना ; द्वारका, सेना और समुद्र का वर्णन।

 सर्ग ४-रैवतक पर्वत का वर्णन ।

सर्ग ५-रैवतक पर्वत पर सैन्य-शिविर का संस्थापन।

 सर्ग- ६ षड्ऋतु-वर्णन ।

 सर्ग ७-वन-विहार का वर्णन।

सर्ग -8 जलक्रीड़ा का वर्णन।

सर्ग-9 सायंकाल,चन्द्रोदय,श्रृंगारविधानादि का वर्णन।

सर्ग १०-पानगोष्ठीवर्णन और रात्रि-क्रीडा का वर्णन ।

सर्ग ११-प्रभात-वर्णन

सर्ग १२-श्रीकृष्ण के पुनः प्रस्थान और यमुना नदी का वर्णन ।

सर्ग १३-श्रीकृष्ण और पाण्डवों का मिलन, श्रीकृष्ण का नगर-प्रवेश, दर्शक नगर नारियों की विलासपूर्ण चेष्टाएँ।

सर्ग १४-युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ का प्रस्ताव, श्रीकृष्ण की प्रथम पूजा और भीष्म द्वारा उनकी स्तुति।

सर्ग १५-शिशुपाल का क्रुद्ध होना और उसके पक्ष के राजाओं का युद्धार्थ तैयार होना।

सर्ग १६-शिशुपाल के दूत का श्रीकृष्ण की सभा में उभयार्थक

वाक्यों का प्रयोग, सात्यकि द्वारा उसका उत्तर तथा पुनः दूत का उत्तर ओर उसके द्वारा शिशुपाल के पराक्रम का वर्णन।

सर्ग १७-श्रीकृष्णपक्षीय राजाओं का अत्यन्त क्रुद्ध होना, श्रीकृष्ण की सेना की तैयारी और उसका प्रस्थान।

सर्ग १८-दोनों सेनाओं का सामना और घोर युद्ध का वर्णन ।

सर्ग १६-चित्रालंकारयुक्त श्लोकों से विचित्र व्यूह-रचना एवं युद्ध का वर्णन।

 सर्ग २०-श्रीकृष्ण और शिशुपाल का शस्त्र युद्ध, दिव्यास्त्र-यद्ध, वाग्युद्ध, शिशुपाल के अपशब्दों से क्रुद्ध श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शनचक्र से शिशुपाल का शिरश्छेदन ।

 भारतीय ज्ञान परंपराओं में भारवि

नैषधीयचरित की संक्षिप्त कथा

 इसमें २२ सर्ग हैं। १३ वे सर्ग(५६ श्लोक) और १६वा (६७ श्लोक) सर्ग को छोड़कर शेष सभी सर्गों में १०० से अधिक श्लोक हैं। कई सर्गों में १५० से अधिक श्लोक हैं। सर्ग १७ में श्लोक-संख्या २२२ हो गई है। इसमें नल-दमयन्ती के प्रणय से लेकर परिणय (विवाह) तक का सांगोपांग वर्णन है। सर्गानुसार कथानिम्न प्रकार है :

सर्ग १-नल और दमयन्ती का एक दूसरे के गुणों को सुनकर परस्पर आकृष्ट होना। नल का वन-विहार, एक हंस को पकड़ना, हंस विलाप ,दया करके हंस को छोड़ना।

 सर्ग २-हंस का कृतज्ञताज्ञापन और दमयन्ती का गुणानुवाद। नल के आग्रह पर हंस का दमयन्ती के पास कुण्डिनपुरी जाना।

 सर्ग ३-हंस का दमयन्ती के सामने नल का गुणानुवाद, दमयन्ती की नल के प्रति अनुरक्ति और हंस का नल के पास लौटना।

सर्ग ४-दमयन्ती की विकलता का भावपूर्ण वर्णन तथा पिता भीमसेन द्वारा स्वयंवर का निर्णय ।

 सर्ग ५-इन्द्र, अग्नि, यम और वरुण का नल को दूत बनाकर दमयन्ती के पास भेजना।

सर्ग ६-अदृश्य नल का दमयन्ती के यहाँ पहुँचना और उसका सौन्दर्य को देखना।

सर्ग ७-दमयन्ती का नख-शिख वर्णन।

सर्ग ८-नल का प्रकट होकर देवों का सन्देश दमयन्ती को सुनाना और चारों देवो में से किसी एक को चुनने का आग्रह करना।

 सर्ग 9 नल-दमयन्ती का वार्तालाप, दमयन्ती का देवों में से किसी को  वरण न करने का निश्चय और नल को विवाहार्थ राजी करना।

सर्ग १० स्वयंवर-विवरण, दमयन्ती का स्वयंवर-वर्णन।

सर्ग११ और १२–सरस्वती के द्वारा राजाओं आदि का परिचय दिया जाना।

सर्ग १३-चार देवता (इंद्र, अग्नि, वरुण,यम ) व  नल (पंचनली) का सरस्वती द्वारा श्लेषयुक्त वर्णन।

सर्ग १४-देवों की स्वीकृति से दमयन्ती का नल को वरण करना और देवों का आशीर्वाद देना।

सर्ग १५-विवाह की तैयारी।

सर्ग १६-विवाह-संस्कार आदि, ज्योनार ( बारात को दिया जाने वाला वैवाहिक भोजन) आदि का वर्णन, ६ दिन रुककर नल का अपनी राजधानी पहुँचना।

सर्ग १७-देवों का लौटते समय कलि से मिलना, कलि के मुँह से चार्वाक-सिद्धान्त का विस्तृत वर्णन, देवों द्वारा चार्वाक-सिद्धान्त-खण्डन, क्रुद्ध कलि का नल को राज्यच्युत तथा दमयन्ती से वियुक्त करने का शाप।

 सर्ग १८-नल-दमयन्ती का प्रथम मिलन तथा काम-क्रीडा-वर्णन।

 सर्ग १9 से २२-चार सर्गों में नल-दमयन्ती की दिनचर्या, देवस्तुति, चन्द्रोदय, सूर्योदयादि का वर्णन, नल दमयन्ती का विलास-वर्णन तथा कवि-वृत्त-वर्णन से महाकाव्य की समाप्ति ।


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