भारतीय ज्ञान परंपराओं में कालिदास

भारतीय ज्ञान परंपराओं में कालिदास

 संस्कृत साहित्य की विभिन्न विधाओं में पारंगत वी अद्वितीय कवि ही कवि कुलगुरू कालिदास है कालिदास को कवि शिरोमणी कहा गया है कालिदास ने संस्कृत नाटक संस्कृत महाकाव्य व खंडकाव्य की रचना की है जिनमें सुप्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् व सुप्रसिद्ध महाकाव्य रघुवंशम् सम्मिलित है कालिदास विरचित दो महाकाव्यों में रघुवंश महाकाव्य कुमारसंभव है। नाटकों में अभिज्ञानशाकुंतलम् मालविकाग्निमित्रम् व विक्रमोर्वशीयम्  है जबकि खंडकाव्य में ऋतुश्रृंगार व  मेेघदूूतम सम्मिलित है।

कुमारसंभवम् का वर्ण्य विषय

इस महाकाव्य में हिमालय की पुत्री पार्वती द्वारा घोर तपस्या के फलस्वरूप वर रूप में शिव को प्राप्त करने तथा उनसे कार्तिकेय (स्कन्द, कुमार) की उत्पत्ति व  तारकासुर के वध का वर्णन है। सर्गानुसार कथा संक्षेप में इस प्रकार है

-सर्ग १–हिमालयवर्णन तथा पार्वती की उत्पत्ति।

सर्ग २-तारकासुर से पीड़ित देवों का ब्रह्मा के पास जाना और शिव-पार्वती के पुत्र स्कन्द द्वारा तारकासुर के वध का उपाय ब्रह्मा के द्वारा बताया जाना।

 सर्ग ३-कामदेव द्वारा शिव की तपस्या का भंग किया जाना और क्रुद्ध शिव द्वारा कामदेव को भस्मसात्  करना।

 सर्ग ४–पति के नाश पर रति का विलाप।

 सर्ग ५-पार्वती की घोर तपस्या  का वर्णन और ब्रह्मचारी वेशधारी शिव से पार्वती का संलाप और मिलन।

सर्ग ६–विवाहेच्छुकशिव का पार्वती के याचनार्थ सप्तषियों को हिमालय के पास भेजना।

सर्ग ७-शिव की वरयात्रा और पार्वती-परिणय ।

 सर्ग -8-शिव-पार्वती का दाम्पत्य जीवन,केलि-विहार-वर्णन । (कुछ विद्वान् केवल ८ सर्ग ही कालिदास की रचना मानते हैं, इस सर्ग को आनंद वर्धन आदि विद्वानों ने निन्दित माना है)।

 सर्ग 9-दाम्पत्य सुखानुभव करते हुए विविध पर्वतों पर घूमकर कैलास पर्वत पर वापस आना।

 सर्ग १० कार्तिकेय (कुमार, स्कन्द) का गर्भ।

 सर्ग ११-कुमार-जन्म तथा कुमार का बाल्य-वर्णन।

सर्ग १२-कुमार का सेनापतित्व।

सर्ग १३—कुमार द्वारा सैन्य-संचालन।

सर्ग १४-देव-सेना का आक्रमणार्थ प्रयाण।

 सर्ग १५–देवासुर-सैन्य-संघर्ष।

 सर्ग १६-युद्ध-वर्णन।

सर्ग १७-तारकासुर-वध ।

रघुवंशम् का  वर्ण्य विषय

रघुवंश में मनु से लेकर सूर्यवंशी ३१ राजाओं के जीवन का वर्णन है। इनमें दिलीप, रघु, अज, दशरथ और राम के जीवन का विशद एवं विस्तृत वर्णन किया गया है। सर्गानुसार संक्षिप्त कथा निम्न प्रकार है :-

सर्ग १-दिलीप के गुणों का वर्णन ,राजा दिलीप की सन्तानहीनता और सन्तान प्राप्त्यर्थ कुलगुरु वसिष्ठ के आश्रम को जाना, व वशिष्ठ के आदेशानुसार कामधेनु की पुत्री नन्दिनी की सेवा का व्रत लेना।

सर्ग २-नन्दिनी की सेवा, राजा की परीक्षा, दिलीप की सेवा से प्रसन्न नन्दिनी द्वारा सन्तान-लाभ का वरदान।

 सर्ग ३-रघु का जन्म होना, विद्याध्ययन, इन्द्र से युद्ध में विजय-प्राप्ति तथा रघु का राज्याभिषेक वर्णित ह ।

 सर्ग ४-रघु की दिग्विजय का वर्णन ।

सर्ग ५–ब्रह्मचारी कौत्स द्वारा गुरुदक्षिणा के लिए १४ करोड़ रुपए की याचना,तदर्थ रघु का कुबेर पर आक्रमण, धन-वृष्टि, प्रसन्न कौत्स द्वारा रघु को इन्दुमती-स्वयंवर के लिए पुत्र लाभ का आशीर्वाद, फलस्वरूप पुत्र अज का जन्म, अज का प्रस्थान ।

सर्ग ६ -इन्दुमती-स्वयंवर का वर्णन ।

सर्ग ७–अज-इन्दुमती का विवाह, प्रतिस्पर्धी राजाओं से युद्ध और अज की विजय ।

सर्ग ८-अज का राज्याभिषेक, दशरथ-जन्म, इन्दुमती-वियोग और अज का विलाप;

 सर्ग .9. दशरथ का मृगया-वर्णन, श्रवणकुमार की बाण से मृत्यु , और दशरथ को शाप ।

सर्ग १०-पुत्रेष्टियज्ञ, राम आदि दशरथ पुत्रों का जन्म ।

 सर्ग ११-सीता का स्वयंवर और राम आदि का विवाह ।

सर्ग १२-राम-वनवास, सीता-हरण, युद्ध, रावण का वध

सर्ग १३-राम का पुष्पक विमान से अयोध्या प्रत्यागमन तथा मार्गस्थ

स्थलों  विभिन्न  आश्रमों का विशद वर्णन।

सर्ग १४-राम-राज्याभिषेक, सीता चरित्र का वर्णन ,सीता परित्याग।

सर्ग १५-कुश-लव-जन्म, राम का स्वर्गारोहण ।

सर्ग १६-कुश का राज्याभिषेक,  कुश के शयनकक्ष में अयोध्या देवी का आगमन ।

सर्ग १७-कुश का स्वर्गवास, कुश-पुत्र अतिथि का राज्याभिषेक ।

सर्ग १८–अतिथि तथा उसके वंशज २१ राजाओं का संक्षिप्त वर्णन, राजा सुदर्शन की उत्तम शासन व्यवस्था का विशेष वर्णन।

 सर्ग 19-अग्निवर्ण का राज्याभिषेक, उसकी अत्यधिक विलासिता व विषयासक्ति, राजयक्ष्मा से पीड़ित होकर  दुख:पूर्ण स्वर्गवास, उसकी रानी का राज्याभिषेक, गर्भस्थ बालक के उत्तराधिकारी होने का अमात्यों द्वारा निर्णय ।

मेघदूत की संक्षिप्त कथा

इसमें  इसमें अपने स्वामी कुबेर के द्वारा अभिशप्त विरही यक्ष का वर्णन है। वह मेघ के द्वारा अपनी प्रिया यक्षिणी को सन्देश भेजता है। इस काव्य को दो भागों में बांटा गया है पूर्वमेघ व  उत्तरमेघ ।पूर्वमेघ में रामगिरि से लेकर अलका तक का मार्ग बताया गया है और उत्तरमेघ में प्रिया के लिए सन्देश है। संक्षिप्त कथा इस प्रकार है:

पूर्वमेघका  वर्ण्य विषय

-अलका पुरी के स्वामी कुबेर ने अपना कार्य उत्तरदायित्व के साथ न निभाने के कारण एक यक्ष को शाप दिया कि वह एक वर्ष तक अपनी पत्नी वियुक्त होकर मर्त्यलोक में निवास करे। वह शापवश रागगिरि पर्वत पर निवास करता है। शाप के लगभग ८ मास बीतने पर आषाढ़ के प्रथम दिन उसे एक मेघ (बादल) दिखाई पड़ता है। वह अपनी प्रिया के बिना अत्यन्त व्याकुल है, अतः यह विचार किए बिना कि बादल जो कि धुंआ ,अग्नि ,पानी व हवा का समूह है उसका सन्देश ले जाने योग्य है या नहीं, वह उसे प्रिया की नगरी अलका तक का मार्ग बताता है और कहता है कि कुछ विशिष्ट स्थानों पर ,पर्वतों पर विश्राम करते हुए  विभिन्न नदियों का जलपान करते हुए  उज्जैनी का दर्शन करते हुए अलका तक जाना। ये विशेष स्थल हैं-माल प्रदेश (मालवा), आम्रकूट पर्वत (अमरकण्टक),नर्मदा नदी, विदिशा (भिलसा) नगरी, नीचैगिरि, निर्विन्ध्या नदी, उज्जयिनी, उज्जयिनी में महाकाल का मन्दिर और सिप्रा नदी, देवगिरि, चर्मण्वती नदी, कुरुक्षेत्र, सरस्वती नदी, कनखल, गंगानदी, हिमाचल पर्वत, क्रौंच रन्ध्र (नीतिमाणा दर्रा), कैलाश और अलका नगरी।  इस प्रकार भौगोलिक तथ्यों का यथावत वर्णन करने के कारण यह काव्य सुप्रसिद्ध है।

उत्तरमेघ का  वर्ण्य विषय

हे मेघ, तुम्हें अलका में गगनचुम्बी प्रासाद मिलेंगे। वहाँ सदा सुख, वैभव, आनन्द और विलास है। वहाँ कुबेर का प्रासाद है। उसके उत्तर में मेरा घर है, वहाँ मेरी विरहिणी प्रियतमा को देखोगे। वह शोक से खिन्न,मलिन, उदास, कृशकाय और तुषारपात से म्लान पद्मिनी के तुल्य दिखाई पड़ेगी, उससे मेरा सन्देश कहना कि तुम खिन्न न हो। वियोग के शेष चार मास धैर्य से बिताना। सुख के दिन शीघ्र आने वाले हैं। मैं भी किसी प्रकार दुःख के दिन काट रहा हूँ। दुःख-सुख का चक्र बदलता रहता है। वियोग के दिन पूरे होते ही शीघ्र मिलन होगा। इस प्रकार यक्ष वियोगावस्था में होने के कारण जड़ पदार्थ के द्वारा भी संदेश भेजता है। जड़ पदार्थों में चेतन तत्वों का आभास कराना कालिदास की मुख्य विशेषता रही है।

ऋतुसंहार का  वर्ण्य विषय

 इसमें ६ सर्ग और १४४ श्लोक हैं। इन ६ सर्गों में ६ ऋतुओं का क्रमशः वर्णन है। इनका क्रम है ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर और वसन्त । इसमें ६ ऋतुओं का पूरे विवरण के साथ वर्णन है। एक के बाद दूसरी ऋतु आती है, प्रकृति में नवीनता आती है; जीवन में उल्लास उल्लसित होता है, प्रेमी-प्रेमिका उत्फुल्लित होते हैं और वे प्रत्येक ऋतु का उपभोग करते हैं। इस प्रकार इस प्रकार इस काव्य में बताया गया है कि ऋतु परिवर्तन के साथ मनुष्य के मानस पटल में किस प्रकार परिवर्तन होते हैं।


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