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भारतीय अनुसंधान परम्परा व संस्कृत
भारतीय अनुसंधान परम्परा व संस्कृत
भारत में ज्ञान विज्ञान की प्रचलित विभिन्न शाखाओं के मूल में संस्कृत ही है। प्रत्येक विषय का संबंध संस्कृत के साथ है। वस्तुतः है जो कोई भी ज्ञान -विज्ञान की शाखा उपशाखा का विषय वर्तमान में प्रचलित है उस ज्ञान विज्ञान की शाखा का मूल संस्कृत में ही लिखा गया। प्रत्येक शास्त्र संस्कृत में ही निबद्ध थे । अनुसंधान संस्कृत में ही किए गए इसलिए अनुसंधान की समुचित भाषा संस्कृत ही है। ऋषि महर्षियों ने नदी किनारे बैठ करके बिना किसी आधुनिक साधनों के अभाव के भी शास्त्रों का निर्माण किया। उनके मन मस्तिष्क में संस्कृत के उद्गार ही निकले। रसायन विज्ञान ,भूगोल, खगोल, विज्ञान, कृषि विज्ञान, गणित इत्यादि समस्त विद्याएं संस्कृत में ही लिखी गई। दुर्भाग्य बस मध्यकाल में अनेक विदेशियों के आक्रमण के कारण भारत की अनुसंधान परंपराएं लुप्त होती गई । व समस्त विधाओं व इससे संबंधित अनेक ग्रंथों को विदेशों में ले जाया गया व उन्हें अनुदित करके अंग्रेजी माध्यम से पुनः हमारे ऊपर थोपा जा रहा है । इस स्थिति में भारतीय अनुसंधान परम्परा विलुप्तता की ओर चलती गई। परन्तु पुनः भारत सरकार के प्रयासों से अनुसंधान को आगे बढाने का काम जिस प्रकार से वर्तमान में किया जा रहा है वह प्रशंसनीय है। हाल ही में अंतर्वैषयिक अध्ययन- अध्यापन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 के अंतर्गत अनुसंधान को बढ़ावा देने के जो प्रावधान है वह प्रशंसनीय है। अन्तर्वैैषयिक अनुसंधान को बढ़ावा देने से पुनः भारत की अनुसंधान परम्परायें पुनर्जीवित हो सकती है।
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