नीति ग्रन्थ में मूर्ख के लक्षण

नीति ग्रन्थ में मूर्ख के लक्षण

         संस्कृत साहित्य के गद्य भाग के अन्तर्गत नीति साहित्य आता है । नीति साहित्य में नीति ग्रंथ लिखे गए हैं । नीति ग्रन्थ में मानव जाति के कल्याण हेतु व मानव को सामाजिक व्यवहार सीखाने के लिए कथाओं के माध्यम से अथवा प्रसंग के माध्यम से अथवा प्रकृति के चित्रण के माध्यम से मानव के व्यवहार को समझने का प्रयास किया मनोवैज्ञानिक गया है । नीति ग्रन्थों में कुछ नीति के ग्रंथ अत्यधिक प्रसिद्ध है जैसे भर्तृहरी द्वारा लिखा गया नीति शतकम ,चाणक्य नीति, विदुर नीति ,शुक्र नीति इत्यादि । इन नीति के ग्रन्थों में नीतिशतकम अत्यधिक प्रसिद्ध है । नीति शतकम में 100 श्लोक में विभिन्न विषयों को उद्घाटित किया गया है । इन समस्त विषयों में नीति-शतक में सर्वप्रथम मूर्ख के लक्षण व मूर्ख का चरित्र चित्रण किया गया है, अर्थात इन श्लोकों को मूर्ख प्रकरण/ मूर्ख-पद्धति  कहा जा सकता है । इन श्लोकों  के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया गया है कि सभी चीजों को बदला जा सकता है सब बीमारियों की दवाएं हैं परंतु मूर्ख की कोई दवा नहीं होती ,मूर्ख का कोई समाधान नहीं होता । समुद्र को तेरा जा सकता है हाथी को वश में किया जा सकता है शेर के मुख में रखी हुई मणि को निकाला जा सकता है परंतु मूर्ख को नहीं समझाया जा सकता । अशिक्षित मनुष्य को बड़ी सरलता के साथ समझाया जा सकता है, विद्वान व्यक्ति को भी और भी ज्यादा सरलता से समझाया जा सकता है परंतु मूर्ख व्यक्ति को ब्रह्म भी नहीं समझ सकता । इस प्रकार नीति शतक के आरंभ में मूर्ख की विशेषताओं को दिखाते हुए सावधान किया गया है कि मूर्ख से दूर ही रहना चाहिए ।

मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात्,

समुद्रमपि सन्तरेत् प्रचलदूर्मिमालाकुलम्

भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद् धारयेत्,

तु प्रतिनिविष्टः मूर्खजनचित्तमाराधयेत् 4

अर्थात मगरमच्छ के दांतों के बीच में दबी हुई मणि को भी निकाला जा सकता है, चलती हुई लहरों के बीच में भी कदाचित समुद्र को तरा जा सकता है, अत्यधिक कुपित, भयंकर व विष वाले सांप को भी पुष्प की तरह सिर पर धारण किया जा सकता है परंतु मूर्ख के चित्त को अनुकूल बनाना व मूर्ख को समझाना सर्वथा असंभव है ।

लभेत् सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्,

पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः

कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादयेत्,

तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् 5

अत्यधिक पीसने के बाद कदाचित बालुका से तेल निकालना संभव है हो सकता है ।  मृगतृष्णा में कभी-कभी पिपासित व्यक्ति अपनी प्यास बुझा सकता है । हो सकता है कभी-कभी देशाटन के प्रसंग में किसी खरगोश के सींग दिख जाए परंतु मूर्ख व्यक्ति के चित्त को कभी भी समझाया जाना संभव नहीं है ।

शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक् छत्रेण सूर्यातर्पा,

नागेन्द्रो निशताङ्‌‌कुशेन समदो दण्डेन गोगर्दभौ

व्याधिर्भेषजसंग्रहैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषं,

सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम् 11

अग्नि के प्रकोप को जल से दूर किया जा सकता है । सूर्य का आतप छत्र के द्वारा दूर किया जा सकता है । हाथी अंकुश के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । गाय व गधा दंड के द्वारा नियंत्रित किये जा सकते हैं रोग औषधी के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । विष मंत्र के प्रयोग से दूर किया जा सकता है । इस प्रकार शास्त्र में सबकी अपनी-अपनी औषधी हैं परंतु मूर्ख की कोई भी औषधि नहीं कही गई है ।


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