नामकरण संस्कार

                                             भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परम्परा

                                                               नामकरण संस्कार

                                              नामकरण में आती हुई विकृतियां

                                                      (कुछ भी नाम रख रहे हैं माता पिता)

                                                               डॉ विनोद कुमार शर्मा

 संसार में किसी भी व्यक्ति वस्तु या स्थान का कोई न कोई नाम रखा जाना आवश्यक है बिना नाम या उपाधि के संसार में व्यवहार सम्भव नहीं है, इसीलिए नाम को एक संस्कार के रूप में जाना जाता है। नाम से ही व्यक्ति संसार में उपलब्धि को प्राप्त होता है नाम से ही समस्त व्यवहार चलने वाले होते हैं, और नाम से ही मनुष्य कीर्ति को प्राप्त होता है ।इसीलिए नाम बहुत ही सोच समझ कर के रखा जाना चाहिए। लौकिक व्यवहार हेतु हर व्यक्ति का कोई न कोई नाम रखा जाना आवश्यक है ।भारतीय धर्म ग्रंथों में व स्मृति ग्रंथों में नाम को एक संस्कार के रूप में माना गया है और इसे नामकरण संस्कार के नाम से जाना जाता है।

 भारतीय संस्कृति में अर्थ वाले शब्दों को ही नाम के रूप में रखे जाने की परंपरा रही है, व अर्थ वाला होने के साथ-साथ मंगल अर्थ को देने वाले शब्द को ही नाम के रूप में रखा जाता है, तथा वही नाम  होना चाहिए जो अपने किसी पूर्वज व कुल की याद दिलाता हो ।इसी पैमाने के आधार पर भारतीय संस्कृति में कई राजाओं के नाम जयसिंह द्वितीय, पृथ्वीराज तृतीय इस प्रकार के नाम रखे गए हैं जो कि अपने पूर्वजों की स्मृति दिलाते हैं ।दक्षिण भारत में अभी भी अर्थ वाले शब्दों को ही नाम के रूप में रखा जाता है इसके साथ ही दक्षिणी भारत में अपने नाम से पूर्व पिता का नाम अथवा अपने ग्राम का नाम जोड़ने की भी परंपरा है ।परंतु वर्तमान में नामकरण की इस परंपरा में विकार दिखाई देने लगे हैं। उत्तरी भारत में बच्चों के उस प्रकार के नाम रखे जा रहे हैं जिनका कोई अर्थ निकलकर नहीं आता है । आज के  10, 15 साल पहले तक  भारत में बच्चों के नाम अंग्रेजी शब्दों से मिले-जुले रखे जाते थे और अब स्थिति यह है कि लड़कियों के नाम शिवन्या,चवन्या,दक्षिण्या  व लड़कों के रियान, कियान  आदि रखे जा रहे हैं। यहां हम यह देखते हैं कि” शिवन्या” में संधि विच्छेद व समास करने पर भी शिवन्या का कोई अर्थ निकल कर के नहीं आता। यही समस्या अन्य नामों के साथ भी है  ।

बच्चों के इस प्रकार के अर्थहीन नाम रखने से उनके आध्यात्मिक उन्नति में बाधा हो सकती ह। इसी के साथ ही बच्चे अपनी कुल परम्परा से दूर होते हैं वह अपने इतिहास को भूलने लगते हैं जबकि इतिहास प्रसिद्ध नाम रखने से व अपने कुल की परम्परा के अनुसार नाम रखने से बच्चे व आगामी पीढ़ी अपने कुल व इतिहास से जुड़ी रहती है। इसीलिए माता-पिता को चाहिए कि अर्थवान शब्दों से ही अपने बच्चों का नाम रखें।

                                                   


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