नाट्यशास्त्र व संस्कृत नाटक

भरतमुनि विरचित नाट्यशास्त्र एक अद्भुत ग्रंथ है जिसमें 6000 सूत्रों में कार्यक्रमों में नाटक के विभिन्न सिद्धांतों रस की उत्पत्ति के सिद्धांत नायक नायिकाओं की परिभाषाएं वह नाटक में प्रयोग होने वाले विभिन्न नियमों सिद्धांतों नाटक ग्रहों की निर्माण विधि के सुख में सूत्रों का विवेचन किया गया है । नाट्य शास्त्र में पंच संधियों पंचकारी अवस्थाओं वह नाटक के विभिन्न तथ्यों के साथ में ही विभिन्न अभिनय के अंगों अभिनय अभिनय के प्रकारों का भी वर्णन किया गया है नाट्य शास्त्र में 10 प्रकरणों के परिचय दिए गए हैं नाट्यशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य एक उत्तम नाटक की रचना करना है ।

संपूर्ण काव्य जगत में नाटकों को रमणीय कहा गया है नाटकों में भी अभिज्ञान शाकुंतलम् की विशेष महिमा है अभिज्ञान शाकुंतलम् में भी चतुर्थ अंक सुप्रसिद्ध है वह चतुर्थ अंक में भी चार श्लोक जो कि विश्व प्रसिद्ध हो गए हैं इन चारों श्लोकों की महिमा अद्भुत है।  इन चारों श्लोकों में चेतन व जड पदार्थ के सम्बन्ध का मर्म समझाया गया है। वह अद्भुत व अकल्पनीय होने के साथ-साथ काव्य तत्व की दृष्टि से विशिष्ट है। अभिज्ञान शाकुंतलम् के 4 श्लोक  की प्रसिद्धि निम्न है-

काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला।

तत्रापि चतुर्थोऽकस्तत्र श्लोकचतुष्टयम्।।

संस्कृत नाटकों के विभिन्न पात्र जो कि गुणों को धारण करते हुए सामाजिक व दर्शकों तक काव्य के प्रमुख उद्देश्य को पहुंचाते हैं संस्कृत नाटकों के सुप्रसिद्ध पात्रों में उदयन, चारुदत्त, दुष्यंत, चाणक्य,विदूषक, वासवदत्ता, वसंतसेना, व शकुंतला इत्यादि है इन अभिनेताओं व नायक नायिकाओं के चरित्र के अध्ययन के माध्यम से सामाजिक अपने जीवन में उनके गुणों को सहजता से उधार पाता है इसलिए कतिपय नायक नायिकाओं का परिचय जानना आवश्यक है।

संस्कृत नाटकों के प्रमुख लक्षणलक्षण ग्रन्थों यथा साहित्यदर्पण व दशरूपकम् इत्यादि में दश प्रकरणों व महाकाव्यादि के लक्षण कहे गए हैं। इनमें नाटक के प्रमुख लक्षण निम्न है-

*नाटक 5 संधियों से युक्त होना चाहिए।

* नाटक में कम से कम 5 अंक व अधिक से अधिक 10 अंक होने चाहिए।

* नाटक का संगठन गोपुच्छ के समान होना चाहिए।

* नाटक में श्रृंगार अथवा वीर में से कोई एक रस प्रधान होना चाहिए। अन्य रसं अंगी रूप में होने चाहिए।

* नाटक का नायक धीरोदात्त होना चाहिए।

* नाटक की कथावस्तु ऐतिहासिक होनी चाहिए।

* नाटक का नामकरण कथा में आई हुई किसी प्रमुख घटना के आधार पर होना चाहिए।

नाट्यकवि भास व उनके नाटक –

संपूर्ण नाट्य जगत में प्राचीनतम नाटक कारों में भास का नाम अग्रगण्य है भास द्वारा रचित 13 सुप्रसिद्ध नाटक है जो कि अपनी विशिष्ट नाट्य शैली के कारण प्रसिद्ध है भास्के तेरा नाटक निम्न है-

            नाट्यकवि भास का परिचय

समय:- 370 ई.पू. – 450ई.पू.

भास के नाटकों का अन्वेषणकर्ता – टी. गणपति।

(1909 में त्रावनकोर राज्य से प्राप्त की गई।)

नाटकों की संख्या-13

        भास के नाटकों का विभाजन

रामायण आधारित नाटकम-

1.प्रतिमानाटकम् ,2. अभिषेकनाटकम्

महाभारत आधारित नाटकम्-

1 दूतघटोत्कचम् 2 बालचरितम् 3 कर्णभारम्

4  मध्यमव्यायोगः 5 उरुभंगम् 6 दूतवाक्यम्

7  पंचरात्रम्

उदयनाधारित नाटकम्

1  प्रतिज्ञायौगन्धरायणम् ,2  स्वप्नवासवदत्तम्

 लोककथा आधारित नाटकम्

1 अविमारकम् ,2  चारुदत्तम्


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