छन्द परिचय

वसन्ततिलका

(वर्ण=14)

लक्षणम्-  “उक्ता वसन्ततिलकातभजा: जगौ गः”।

तभजा:=तगण, भगण, जगण,

जगौ-जगण, गुरु

ग:=गुरु,

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी:

दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति।

दैवं निहित्य कुरु पौरुषामात्मशक्त्या

 यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोऽत्र दोषः।।

               मालिनी

(वर्ण=15)

लक्षणम् -“ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः”।

(नगण नगण मगण यगण यगण)

प्रथमयति:= 8

द्वितीययति:= 7

उदाहरणम्

 स हि गगनविहारी, कल्मषध्वंसकारी,

 दशशतकरधारी, ज्योतिषां मध्यचारी।

 विधुरपि विधियोगाद्, ग्रस्यते राहुणाऽसौ,

 लिखितमपि ललाटे, प्रोज्झितुं कः समर्थः ।।

                 शिखरिणी

(वर्ण=17)

लक्षणम् -“रसैरुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी।”

यति:-

रसै:-छ:,(6)

रुद्रैः=ग्यारह (11)

यमनसभलाग:- यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, लघु, गुरु

 उदाहरण-

 यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं, द्विप इव मदान्धः समभवं

 तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः ।

यदा किंचित् किञ्चिद् बुधजनसकाशादवगतम्

 तदा मूर्योऽस्मीति, ज्वर इव मदो में व्यपगतः।।

                   मन्दाक्रान्ता

(वर्ण=17)

लक्षणम्-  “मन्दाक्रान्ता जलधिषडगम्भी नतौ ताद् गुरु चेत् “।

            “मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्।”

यति:-

जलधि:=(समुद्र)= 4

षड्=6

अगैः-(पर्वता:) =7

  ‘मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु’

 उदाहरणम्-

कश्चित् कान्ता, विरहगुरुणा, स्वाधिकारात् प्रमत्तः,

शापेनास्त, गमितमहिमा, वर्षभोग्येण भर्तुः ।

यक्षश्चक्रे, जनकतनया, स्नानपुण्योदकेषु

स्निग्धच्छाया, तरुषु वसति, रामगिर्याश्रमेषु ।।

             शार्दूलविक्रीडितम् –

(वर्ण=19)

लक्षणम् -“सूर्याश्वैर्यदिमः सजौ सततगाः शार्दूलविक्रीडितम्।”

यति:-

सूर्य-बारह,

अश्वैः सात,

म:=मगण

सजौ=सगण जगण

सतततगा:= सगण तगण तगण गुरु

उदाहरणम्-

 या कुन्देन्दुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृता

 या वीणावरदण्डमण्डितकरा, या श्वेतपद्मासना।

 या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,

 सा मां पातु सरस्वती भगवती, निःशेषजाड्यापहा।।

              स्रग्धरास्रग्धरा-

(वर्ण=21)

 लक्षणम्-” म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुताम्रग्धरा कीर्तितेयम्”

यति:-

त्रिमुनि:=7,7,7

 म्रभ्नैः = (म र भ न) मगण रगण भगण नगण,

 यानां त्रयेण= यगण यगण यगण

(मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण)

या सृष्टिः स्रष्टुराद्या, वहति विधिहुतं, या हविर्या च होत्री,

ये द्वे कालं विधत्तः, श्रुतिविषयगुणा, या स्थिता व्याप्य विश्वम्

यामाहुः सर्वबीज, प्रकृतिरिति यया, प्राणिनः प्राणवन्तः,

प्रत्यक्षाभिः प्रसन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः।।

                द्रुतविलम्बितम्

(वर्ण=12)

लक्षणम्- “द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ”

नभौ= नगण भगण

भरौ=भगण रगण

  उदाहरण –

इतरपापफलानि निजेच्छया,

वितरतानि सहे चतुरानन।

अरसिकेषु कवित्व निवेदनं

शिरसि मा लिख मा लिख मा लिख।।

                       वियोगिनी

(वर्ण= 10,11)

( यह अर्थसमवृत छन्द ह। प्रथम, तृतीय तथा द्वितीय चतुर्थ चरण जिनके सम हैं वे अर्धसमवृत्त हैं।)

लक्षणम्-” विषमे ससजा गुरुः समे सभरालोऽथ गुरुर्वियोगिनी”।

विषमे=( प्रथम तथा तृतीय चरण )मे=, ससजा-सगण सगण जगण एक गुरु हो,

 समे=( द्वितीय तथा चतुर्थ चरण) में सभरा-सगण भगण रगण, ल:=लघु, अथ और गुरु

उदाहरण –

सहसा विदधीत न क्रियामविवेक: परमापदां पदम्।

वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धा स्वयमेव सम्पदः।।

                शालिनी

(वर्ण=11)

लक्षण -“मातौगौचेच्छालिनी वेदलोकैः

मा=मगण,

तौ= तगण, तगण

गौ= 2 गुरु

उदाहरणम्-

सा निन्दनती स्वानि भाग्यानि बाला

 बाहुत्क्षेपं क्रन्दितं च प्रवृत्ता।

 स्त्रीसंस्थानं चाप्सरस्तीर्थमाराद्

उत्क्षिप्यैना ज्योतिरेकं जगाम।

                  रथोद्धता

(वर्ण=11)

लक्षणम्-  “रात् परैनरलगै रथोद्धता”

रात्= रगण

नरलगै= नगण, रगण , लघु, गुरु

 उदाहरणम्-

किं त्वया सुभट दूरवर्जितं,

नात्मनो न सुहृदां प्रियं कृतम्।

 यत्पलायनपरायणस्य ते

याति धूलिरधुना रथोद्धता।।

                   भुजंगप्रयातम्

(वर्ण=12)

लक्षणम्-“भुजङ्गप्रयातं श्चतुर्भिः यकारै:”

 जहां चार यगण होते हैं-( यगण यगण यगण यगण)

उदाहरणम्-

महेश: सुरेश:परेश: परात्मा

दिनेशो निशेशो युगेशोसि देव:।


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