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अश्वघोष
बुद्धचरितम् का परिचय व वर्ण्य विषय
बुद्धचरित यह एक महाकाव्य है। इसमें बुद्ध का जीवन-चरित तथा उनके सिद्धान्त वर्णित हैं । इसमें बुद्ध के जन्म से लेकर महानिर्वाण तक की कथा वर्णित है। इस महाकाव्य में मूल रूप में २८ सर्ग थे। चीनी और तिब्बती भाषा में किए गए इसके २८ सर्गों के अनुवाद उपलब्ध हैं। संस्कृत में प्रारम्भ से लेकर १४ सर्ग (१४वें के ३१ श्लोक तक) ही प्राप्त होते हैं। १४ से. १७ सर्ग तक का पद्यात्मक भाग १८३० ई० में अमृतानन्द नामक एक नेपाली पंडित ने जोड़ा , तिब्बती भाषा में इसका अनुवाद ८०० ई० के लगभग हुआ था। सम्प्रति सर्ग १ से १४ तक का श्लोकों सहित हिन्दी-अनुवाद सूर्यनारायण चौधरी-कृत प्राप्त है।
सर्गानुसार संक्षिप्त कथा इस प्रकार है :
सर्ग १-बुद्ध का जन्म
सर्ग २–अन्तःपुर में विहार,
सर्ग ३–रोगी और वृद्ध आदि व्यक्तियों को देखकर . मन में संवेग की उत्पत्ति;
सर्ग ४-रमणियों द्वारा बुद्ध को अपने जाल में फंसाने की चेष्टा और बुद्ध द्वारा उनका तिरस्कार;
सर्ग ५–बुद्ध का घर से अभिनिष्क्रमण,
सर्ग ६-बुद्ध को छोड़कर घुड़सवार छन्दक का नगर में लौटना;
सर्ग ७–गौतम का तपोवन में प्रवेश;
सर्ग ८–अन्तःपुर की नारियों का विलाप,
सर्ग ६-कुमार का अन्वेषण;
सर्ग १०-बिम्बसार का आगमन;
सर्ग ११–काम को निन्दा;
सर्ग १२-बुद्ध का अराड ऋषि के आश्रम में गमन और अराड द्वारा धर्मोपदेश;
सर्ग १३-मार (कामदेव) का बुद्ध की तपस्या में विघ्न डालना। दोनों का युद्ध और कामदेव की पराजय ।
सर्ग १४–बुद्धत्व की प्राप्ति। (संस्कृत अंश यहीं तक प्राप्त होता है। अवशिष्ट चीनी व तिब्बती भाषा में प्राप्त होता है) शेष सर्गों की कथा इस प्रकार है :–
सर्ग १५-धर्म- चक्र प्रवर्तन;
सर्ग १६-अनेक शिष्यों का दीक्षित होना;
सर्ग १७—महाशिष्यों की प्रवज्या;
सर्ग १८-अनाथ पिण्डद की दीक्षा;
सर्ग १९-पिता-पुत्र-समागम,
सर्ग २०-जेतवन-स्वीकार
सर्ग २१-प्रव्रज्या-स्रोत-वर्णन,
सर्ग २२-गौतम का आम्रपाली के उपवन में गमन,
सर्ग २३-आयु पर अधिकार करने के प्रकार का वर्णन;
सर्ग २४-गौतम की लिच्छिवियों पर अनुकम्पा;
सर्ग २५-गौतम का निर्वाण-पथ पर अभियान;
सर्ग २६-महापरिनिर्वाण;
सर्ग २७-निर्वाण की प्रशंसा;
सर्ग २८-धातु-विभाजन ।
सौन्दरानन्द वर्ण्य विषय
इसमें नन्द और सुन्दरी की कथा वर्णित है। गौतम बुद्ध का सौतेला भाई नन्द अत्यन्त सुन्दर और विलासी-प्रकृति का व्यक्ति था। वह अपनी पत्नी सुन्दरी पर अत्यन्त आसक्त था व नन्द गृहस्त जीवन में व्यस्तव मग्न था, परंतु गौतम बुद्ध ने बलात् अपनी ओर आकृष्ट कर नन्द को बौद्धधर्म की दीक्षा दी। इसी कथा को इसमें काव्यात्मक रूप दिया गया है।
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